जिन्दगी !
खुशियों के साथ गम का सबब साथ लाती है |
मुस्कुराने की चाहत तो मेरी भी थी
पर उदासी इसे छीन जाती है |
अपने लिए तो सभी जीते हैं
औरों के लिए जीने की तमन्ना ही
जीने की एक आस दे जाती है |
हौसले भी थम जाते गर तूफ़ान ना आया होता |
दिन नहीं होते गर शाम ना आया होता ||
काँटों से कोई दामन ना बचाया होता |
गर फूलों से भी जख्म ना खाया होता ||
...
इबादत के अल्फाज़ ना आये होते
गर कोई किसी का दिल दुखाया ना होता ||
ये वक्त की नजाकत है वरना साहिल ना होते
गर खुदा ने सागर की गहराई ना बनाया होता ||
नींद आ जाती मुझे भी, अगर उनकी बाहों का सहारा होता|
बन जाता रेत भी अगर उनका प्यार किनारा होता ||
रातें अब भी उतनी ही खामोशी से रोज आते हैं |
आँखें खुली रह जाती हैं,और हम उन्हें सोच पाते हैं||
उनसे वादा किया था कि अब उन्हें सपनो में भी नहीं लाउंगा|
भावनाओं और जज्बातों के बोल कभी नहीं लिख पाउँगा||
मेरी परछाई ने भी है ,अब मुझसे नाता तोड़ लिया|
जीवन के हर रंग से मैं ने अब अपना मुंह मोड़ लिया ||
वो शाम पुरानी लगती है वो जाम पुरानी लगती है |
अफसानों के आँगन में अब हर काम पुरानी लगती है ||
जिन्दा हूं और रोज जीने की कोशिश करता हूं।
बद्लते जमाने और इश्क के मर्म में मरने से भी अब डरता हूँ ||
इश्क की आहट सुन अब क्यों जिन्दा ही मर जाता है |
अब जाकर जाना है कि दिल की दुनिया में प्यार भी एक समझौता है ||
अरमानों के इस गुलशन में यादें ही आँखें भिंगोता है |
जब सारा आलम सोता है तो ये पगला क्यों रोता है ||
ख़ून से जब जला दिया एक दिया बुझा हुआ|
फिर मुझे दे दिया गया एक दिया बुझा हुआ||
तुम्हारी आंखो के साहिल से दूर कहीं अपना आशियाना बनाऊ कैसे।
तिनकों के घरौंदे में अब रह्कर खुद को समझाऊ कैसे ॥
आरजू की तपिश में पिघलकर भी तेरा नाम ही अच्छा लगता है ।
विरह की आग मे जलकर खाक बन जाना अपना नसीब लगता है ॥
अपने वजूद को खोकर भी खुद को तेरी लौ में जलाउं कैसे।
खाली हाथ आयी इस शाम में तेरी यादों को भुलाउं कैसे ।।
वक्त के हसी सितम ने अब मेरा दामन थाम लिया है ।
इंतजार की एक एक घडी ने मेरे प्यार को नया आयाम दिया है॥
घूम गया जो चक्र, उसी की ओर देखता जाता हूं।
प्रशंसा के अल्फ़ाजों में ,खुद की लेखनी को पाता हूं॥
पथिक बना गन्तव्य को देख, लालच को अब अपनाता हूं।
घूम गया जो चक्र, उसी की ओर देखता जाता हूं||
शब्दों में अब वह जोश नहीं आवेश नहीं मैं पाता हूं।
घूम गया जो चक्र, उसी की ओर देखता जाता हूं||
वाह-वाह और बहुत खूब से मन को हर्षित कर पाता हूं|
घूम गया जो चक्र, उसी की ओर देखता जाता हूं||
कविता जीवन का श्रोत कहां, इसे हसीं का पात्र बनाता हूं|
घूम गया जो चक्र, उसी की ओर देखता जाता हूं||