भारत एक लोकतान्त्रिक देश है और देश में भाषाओँ की विविधता ही इसकी अलग पहचान है |फिर ऐसा क्यों हुआ की महारष्ट्र के विधान सभा में अबू आजमी के हिन्दी में शपथ लेने पर एम. एन. एस के विधायको की थप्पड़ खानी पड़ी |ये इस देश का सबसे बड़ा अलोकतांत्रिक व्यवहार कहा जा सकता है |हिन्दी जो हमारी मातृभाषा है ये उसका अपमान है |इस अमानवीय व्यवहार के लिए उन विधायको को भले ही निलंबित कर दिया गया हो लेकिन ये कैसा मराठी भाषा प्रेम है जो देश को भाषाई राजनीति के तहत बिभाजित करने की कोशिश कर रहा है |
सही मायने में तो ये राज ठाकरे का गुंडाराज है जिसे देश की राष्ट्रीय पार्टी के द्वारा बढावा दिया जा रहा है |जब उन्होंने एक सप्ताह पहले ही ये बयान दिया था की हिन्दी में शपथ लेने वालो को हम देख लेंगे तो फिर उनके ख़िलाफ़ कोई भी कारवाई क्यों नही क्यों गई |पहले उतर भारतीयों के मुद्दे पर फिर अपने मराठी मानुष प्रेम को उन्होंने एक ऐसी राजनितिक हवा देने की कोशिश की है जिससे कांग्रेस पार्टी को राजनितिक लाभ तो मिलता दिख रहा है लेकिन शायद उनकी ये आदत उनके ख़िलाफ़ भी जा सकती है |अज भले इस अलोकतांत्रिक व्यबहार की भर्त्सना की जा रही हो लेकिन राज ठाकरे तो अपना काम कर गुजरे जिसके लिए उन्होंने विगत कुछ दिनों पहले अपनी प्रतिबधता दिखायी थी |
इस दबंगता को क्या कहा जाए |शायद तानाशाह कहा जाए तो कोई अतिशयोक्ति नही होगी ,क्योंकि जैसी स्थिति देश में बन रही है वो सिर्फ़ भाषाई तौर पर किसी वर्ग विशेष ही नही वरन देश के हिन्दी और अहिन्दी भाषियों को बाँट रही है |ये देश की मातृभाषा का अपमान है |जहाँ पिछले छः महीने पहले लोक सभा में अहिन्दी भाषियों के द्वारा हिन्दी में शपथ लेने पर उनका जमकर स्वागत किया गया और मीडिया में ख़बर बनी वही दूसरी तरफ़ मराठी मानुष के भाषाई प्रेम से ये चित्र साफ़ हो गया है की वो अपनी छवि के बिल्कुल अनुरूप काम कर रहे है |क्या उन विधायको के निलंबन मात्र से कारर्वाई को पूरा मान लिया जाए या फिर इस फसाद की जड़ में पहुंचकर उसके समूल नाश की परिकल्पना को निर्धारित किया जाए
ये सवाल आज देश की तमाम जनताओं से है जो किसी न किस रूप में हिन्दी और अहिन्दी भाषी है |क्या इस समस्या का सही निदान कांग्रेस सरकार के पास है या फिर वो अपनी तुष्टिकरण और निजी स्वार्थो में देश की एकता अखंडता ,और अस्मिता को भाषाओ के तराजू पर तोल कर बेचना चाहेंगे|