वो शाम पुरानी लगती है वो जाम पुरानी लगती है |
अफसानों के आँगन में अब हर काम पुरानी लगती है ||
जिन्दा हूं और रोज जीने की कोशिश करता हूं।
बद्लते जमाने और इश्क के मर्म में मरने से भी अब डरता हूँ ||
इश्क की आहट सुन अब क्यों जिन्दा ही मर जाता है |
अब जाकर जाना है कि दिल की दुनिया में प्यार भी एक समझौता है ||
अरमानों के इस गुलशन में यादें ही आँखें भिंगोता है |
जब सारा आलम सोता है तो ये पगला क्यों रोता है ||