Friday, October 9, 2009

बचपन


वो दिन कितने अच्छे थे, जब तुम एक नादान बच्चे थे।
मुस्काते थे एक परी की तरह, कागज की तरह सच्चे थे॥

मन था चंचल, उद्वेलित, लेकिन धुन के पक्के थे।
काश कहूं मैं ये सब किससे कि तुम कितने अच्छे थे॥

याद करूं मैं निश दिन तुम को जब तुम ओझल हो जाते।
खुशी की रेत में, “मेरे गम” आसूं की तरह थे खो जाते॥

आज भी मैं यादों में खोया,वो दिन कोइ लौटा दे।
फिर से देखूं तुझे यूं ही,तू एक बार तो मुस्का दे॥

मैं भी पागल सोच रहा हूं, वो दिन कहां से लाउंगा।
ताश के बने घरों में , कैसे मैं रह पाउंगा॥

वो दिन कितने अच्छे थे, जब तुम एक नादान बच्चे थे।
मुस्काते थे एक परी की तरह,कागज की तरह सच्चे थे॥

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