Thursday, January 14, 2010

फाइनल फोबिया





"जीते तो ताली हारे तो गाली" भारतीय क्रिकेट टीम के लिए ये सबसे सटीक और सहज पुरस्कार है |इस देश में धर्म माने जाने वाले इस खेल और खेलप्रेमियों का भावनात्मक लगाव कुछ यही बयाँ करता है |वही हुआ जिसका डर था|धोनी की युवा और सशक्त मानी जाने वाली टीम एक बार फिर फाइनल के डर कों नहीं झेल पायी|खेल के आगाज़ ने ही अंजाम का रूख तय कर दिया था |धन्यवाद के पात्र तो रैना और जडेजा है जिन्होंने मुश्किल क्षणों में दवाब में डूबती नैया कों शतकीय साझेदारी से साहिल तक पहुंचाने की कोशिश की |

टेस्ट में नम्बर वन बनने वाली टीम के पांच कागजी शेर ताश के पत्तो की तरह ढेर होते दिखे |आशावादी सोच ने दर्शको के आँखों में आंसू तक ला दिए |"जीत जीत होती है और इसके लिए एक ख़ास जज्बे की जरूरत होती है" ,मैच के ठीक बाद क्रिकेट विशलेषक का गुस्सा (कपिलदेव ,अतुल वासन ) सातवे आसमान पर था |आखिर हो भी क्यों ना ये शायद इस क्रिकेट की इस कैप की अहमियत कों ज्यादे सही तरीके से अंजाम तक लाने की जुगार में लगे रहते थे|
अंगरेजी में एक कहावत है ( Hope is the cause of sorrow )शायद भारतीय दर्शक कों क्रिकेट खिलाडियों ने नए साल का ये बेहतरीन तोहफा दिया हो ! कहते है की जीत के लिए एक ख़ास किस्म की जज्बे की जरूरत होती है ,मिस फील्डिंग ,कैच टपकाना,हाथ उठाकर दुसरे फिल्डर की तरफ इशारा करना की भैया गेंद जा रही है पकड़ लेना |ये सब तो था ही हमारे खिलाडियों में आखिर ये फाइनल जो खेल रहे थे |इतिहास गवाह है कप्तान कोई भी क्यों ना हो हम फाइनल तो हार ही जाते है |विदेशों में सबकी नेत्रित्व क्षमता पर एक सवालिया निशान लग ही जाता है |

श्री लंकाई टीम इस जीत की हकदार सही मायने में थी ,क्योंकि वो भारतीय खिलाड़ियों की अपेक्षा सभी क्षेत्रों में उन पर भारी पर रहे थे |हारने के बाद भी पुरस्कार वितरण समारोह के दौरान युवराज की बतीसी कैमरे के सामने बखूबी दिख रही थी | अरे भाई हो सकता है आपको ये वाक्य थोड़ा दुःख दे सकता है |क्या करू भाई मैं भी तो एक भारतीय दर्शक का ही दिल रखता हूँ | "कारज धीरे होत है काहे होत अधीर" धीरे धीरे ही सही जीत की आस कों हम शब्दों की मजबूती तो जरूर दे सकते है | आशा करते है की हमारी टीम फाइनल फोबिया से शायद उबर पाए |क्रिकेट की भाषा में टफ लक दिस टाइम ,बेटर लक नेक्स्ट टाइम|

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