आज़ादी किसे अच्छी नही लगती वो खूंटे से बंधा पशु हो या फिर पिंजरे में बंद पक्षी , बचपन की यादों को ताज़ा करने के लिए काफ़ी हैं लेकिन क्या सही मायने में हम आजाद हैं |कुछ सवाल ऐसे हैं जो इस मानवता को झकझोरने के लिए काफ़ी हैं आज हम ने आज़ादी के ६२ वें सालगिरह को मनाया है लेकिन आज भी हम आज़ादी की सच्चाई से बहुत दूर हैं |देश आज भी गरीबी और भूख मरी की समस्या से जूझ रहा है घोषणाओं और वादों से गरीबों का पेट तो नही भरा जा सकता उनके लिए कौन सी आज़ादी और कैसी आज़ादी वो इन चीजों को शायद जानते भी नही |
विकास के रास्ते पर हमने अपने कदम इतने तेज बढाये की गाँव का भारत बहुत पीछे छुट गया और विकासवादी सिध्यांतों का पीछा करने में हम आजाद भारत के गाँव के सपने भूल गए क्या यही है हमारी आज़ादी आज भी अगर लड़कियों को घर से निकलने में डर लगता हो तो कैसी आज़ादी क्या मानवता का गला घोट कर शिखर पर पहुंचना ही आज़ादी है अगर ऐसा है टी हम सही मायने में आजाद हो चुके हैं अन्यथा आज भी गाँव का भारत और उसकी आधी आबादी को दो जून की रोटी ठीक से नही मिल पा रही है |
सरकारी नीतियों से सिर्फ़ संतुष्टि मिल सकती है वो भी पल भर के लिए लेकिन मानवता के कल्याण के लिए एक ऐसे क्रांति कई जरूरत है जिसकी क्रांति से बदलाव लाना सम्भव है लेकिन सबसे ज्यादे जरूरत है ऐसे क्रांतिकारी की जो क्रांति की मसाल जला सके .शब्दों में अब उतनी ताकत नही जो वैसी क्रांति ला सके जैसा की पहले हुआ करता था अब लिखे जरूर जाते हैं लेकिन उनपे अम्ल नही किया जाता है सिर्फ़ एक दिन निर्धारित होते हैं जिसमें हमारी सरकार गरीबों की समस्या से सबको रु बरू करा देती है लेकिन उनके उपाय नही होते हैं |अगर ऐसी आजदी भारत्वासिओं को प्यारी है तो मैं ऐसा भारत वासी कहलाना पसंद नही करूंगा |
अगर हम सही मायने में भारतीय हैं तो हमें मानवता के कल्याण के लिए एक ठोस कदम उठाने की जरूरत है अगर हम ऐसा करने में सफल होते हैं तो हम सच्चे भरतीय कहलाने के पुरे हक़दार हैं अन्यथा नही |आख़िर इन ६२ सालों में बदला क्या सिर्फ़ हमारे कपड़े और हमारी अनुसरण करने की शक्ति और तो कुछ भी नही बदला |सही मायने में अगर हम्मे मानवीयता शेष है तो एक ऐसा प्रयास करें जो आज़ादी के सही मायनों को दर्शाती हो |