
" ये जूता है जापानी ........ न मेरा जूता जापानी था न ही चीन का लेकिन इसकी अहमियत अभाव और कशमकश भरी जिन्दगी में शायद कुछ ज्यादे हो गयी थी |मंदिरों और मस्जिदों में जूतों की चोरी या सहसा उसका गायब हो जान एक आम बात है , लेकिन अगर आपका घर भी खुद को सहज ना पाए तो हो सकता है आपको ज्यादे तकलीफ होगी |जीवन के अध्यात्मिक दौर की समाप्ति मेरे लिए काफी दुखद साबित हो रही है, लम्बे समय के बाद कल फुर्सत मिली तो सोचा कमरे में लगे मकडी के जालों से निजात पा लूं , क्या पता था कि ये साफ़ सफाई भी इतना महंगा पडेगा |
दिल्ली की चिलचिलाती धुप में जब नंगे पाऊं घूमने की बारी आई तो सहसा गरीब की गरीबी और अपना बेचारापन याद आ गया | इसे मेरी लापरवाही कहें या मन मौजीपन लेकिन नोइडा के मामूरा गाव में देर रात सोने और सुबह देर से जागने के शायद सबसे महंगी कीमत मैं चुका रहा हूँ| छः महीने के अंतराल के बाद एक जूता खरीदने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था वो भी कल रात चोरी हो गयी |उसे सुबह खूब कोसा , गाली भी दी, लेकिन गुस्सा शांत हुआ तो सोचा कि शायद उसे मुझसे ज्यादे जरूरत थी इसकी इसलिए तो चुरा लिया !उसने मुझसे दस रुपये मांग लिए होते , या खाना मांग लिया होता, उसे क्या पता कि उसकी आदत मुझे इतना दुख दे जायेगी |
पिछले बार जब घर से आ रहा था तो दादा (पिता जी )ने पैर में एक टूटा चप्पल देखकर कहा "दिल्ली में ऐसे ही रहते हो और पांच सौ रुपये खर्च से अलग देकर जूता खरीदने को कहा था |उन्हें क्या पता कि पत्रकारिता जीवन में जूते घिसने के वजाई पैरों को घिसना पडेगा | कुछ दिनों पहले "ताज होटल" में हिन्दुस्तान टाइम्स के एक आयोजन "आई लव देल्ही माई दिल्ली माई गेम्स " में जब शीला दीक्षित , सुरेश कल्मांदी , और विजेंदर कुमार से रू बरू होना था तो दरबान ने मजाकिए लहजे में कहा कि आप पत्रकार हो लगता नहीं है, उसके इस मजाक पर उस समय तो उसे देखा कर हस दिया क्योंकि वहां से खबर लाने थी और मेरे लिए खबर अहम् थी न कि मै ने क्या पहन रखा है और कहाँ जा रहा हूँ !
वाकई दिल्ली के उतने बड़े होटल के कर्मचारी भी टाई और सूत बूट में होते हैं |मै ने सोचा था कि इस जूते के घिसते -घिसते कहीं न कही तो बैठने की जगह तो मिल ही जायेगी लेकिन भाग्य को शायद कुछ और ही मंजूर था | पहली बार किसी आलेख को उसके अधूरेपन में छोड़ रहा हूँ , जिसके लिए क्षमा प्रार्थी हूँ|