ख़ून से जब जला दिया एक दिया बुझा हुआ|
फिर मुझे दे दिया गया एक दिया बुझा हुआ||
गम लिखूं या कम लिखूं इस खेल में फसा हुआ |
अतीत की वो याद है जो मिल गया खुदा हुआ ||
जिन्दगी के खेल में अकेलेपन का इन्तहा हुआ |
सोचने से पहले उनसे कोई लब्ज था बयाँ हुआ ||
सोच कर चला था मैं ,काफिला ही अब जुदा हुआ |
अपने थे जो बन गए , रकीब सा खफा हुआ ||
वो शाम की चिराग थी, जो बुझ गया जला हुआ |
रोशनी के अँधेरे में ,कुछ खो गया मिला हुआ ||