Thursday, February 3, 2011

पत्रकार हो तो टी. वी . पर दिखो

शाम हो चुकी थी, सूरज अपनी रोशनी को धुन्ध मे लपेटे रात की अगवानी में लगा था, एक खटिये पर बैठकर चाय पी रहा था , चाय मे चीनी थोडा ज्यादे था , घर में लाईट नहीं है, छोटे भाई ने अपनी कमाई से एक लालटेन खरीदी है उसी की रोशनी में सब काम होता है | इसलिए शायद मां ने चीनी ज्यादे दे दी होगी |लगता है कि उनकी उम्र अब ज्यादा हो चुकी है और उनकी आँखों की रोशनी भी कम होती जा रही है ,एक लम्बे अरसे बाद घर गया था |कुछ लोगों से मैं मिल आया तो कुछ अभी बांकी थे जो गाँव में ही रहते हैं और पैसे के अभाव में अपनी पढ़ाई छोड़कर अपने काम रोजगार में लग गए थे | अब अच्छा कमाते हैं और खुश भी हैं |

कुछ महीनो पहले नयी नौकरी मिली है , उसके बाद घर का यह पहला दौरा था ! ऐसा इसलिए कह रहहा हूँ क्योकि रोजी -रोटी के चक्कर में तो घर जैसे विदेश हो गया हो | विवेक मेरे उन घनिष्ट मित्रों में से है जिसे लंगुटिया यार कहा जाए तो गलत नहीं होगा |घर जाने पर मेरी कोशिश होती है कि इस बन्दे से जरूर मिला जाए |मैं एक पत्रकार की नौकरी पाकर गया था सो घर वाले खुश थे और सब कुशल क्षेम पूछ रहे थे |

गावों में आज भी नौकरी का मतलब सरकारी नौकरी से ही है , अगर वो नहीं मिला तो आप प्राइवेट नौकरी वाले कहे जाते हैं और आपका भविष्य सुनिश्चित नहीं है | बेटी का बाप भी आपको कम तिलक देना पसंद करेगा बजाय इसके कि कोई सरकारी नौकरी वाला उसे मिल जाए ,वो भले राज्य सरकार के नयी बहाले में बहाल हुआ मास्टर ही क्यों ना हो | वाकई हो भी क्यों ना आखिर सरकारी नौकरी में पेंशन भी तो मिल जाते हैं ना |

मैं ने सोचा क्यों ना खाना खाने से पहले एक आध दोस्तों से मिल ही लूं , सो विवेक की घर की तरफ चल पडा ,गावों में ठंढ तब भी बहुत पड़ रही थी , माँ ने कहा ओढना (चादर ) तो ओढ़ लो तब जाना |उनकी बात को अनसुना करते हुए बस मैं अपनी धुन में चल पडा |

विवेक का घर गॉव के दूरे मोहल्ले में हैं , जैसे ही उसके घर पहुंचा और उसने तपाक से गले लगाया तो मानो जैसे कलेजे को ठंडक पहुँची हो , जाड़े में भी गर्मी का एहसास हो रहा हो |उसने चाय के लिए पूछा लेकिन मैं ने मना कर दिया , उसके हाल चाल पूछने के बाद मै ने भी उसका हाल चाल पूछा और खूब सारी बातें होने लगी | तू तो अब बड़ा आदमी हो गया है........ उसकी एक बात बड़ी ही प्यारी और प्रश्नवाचक चिन्ह के रूप में मेरे मन में अटक गयी |उसने बड़ी ही बेवाकी और सहज होकर पूछा अच्छा एक बात बताओ तुम पत्रकार हो , लेकिन मैं ने यार कभी तुम्हे टी. वी पर नहीं देखा |उसके इस प्रश्न पर मैं थोड़ी देर तू निरुतर रहा फिर उसी के अंदाज़ में कहा कि अभी टी. वी . पर दिखने में कई साल लग जायेंगे |वो इस बात पर ठहाके लगाते हुए हस पडा और कहा यार और मेहनत करो और जल्दी से जल्दी टी. वी. पर आ जाओ |

वाकई उसके इस सवाल को मैं हमेशा याद रखूंगा कि आज भी गावों में पत्रकार का मतलब सिर्फ टी. वी . पर दिखना है ,मेरे एक बड़े भाई साहब ने भी कुछ इसी अंदाज़ में पूछा कि शशि शेखर का तो हिंदुस्तान में इतना बड़ा फोटो भी आता है और लिखता भी बढियां है |तुम भी कुछ वैसा ही करो जिस से कही नाम हो छप सको |मेरे मना करने के बावजूद विवेक की पिलाई चाय में जहां दोस्ती कि मिठास थी वहीं जिन्दगी का एक कड़वा सच भी उसी मिठास में घुला था कि भैया पत्रकार हो तो लोगों को दिखो |

उसके इस सवाल को अपने मन की गठरी में समेटे बस चल पडा |मैं ने उसे पत्रकार के मतलब भी समझाए और टी. वी पर दिखने वालों की मेहनत और चापलूसी का फ़ॉर्मूला भी |वो शायद समझ गया होगा |


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