उनकी एक बात पर पर मैं हैरां हो जाता हूं।
मेरे हाल पर जब उन्हें रोता हुआ पाता हूं॥
कैसे समझाउं उन्हें,कि मैं उनसे बफ़ा करता हूं।
आखें हो जाती है नम जब दर्द ए गम बयां करता हूं॥
रूह कांप उठती है जब वो मेरी बफ़ा को कोई नाम नहीं देती।
जीवन के उलझन में खुद की तन्हाई कोई मुकाम नहीं देती||
काश वो शाम फिर आती , जब मैं उन्हें मना पाता|
उन्हें अपनी आगोश में लेता और इस बेगानी दुनिया से दूर चला जाता ||
मेरे हाल पर जब उन्हें रोता हुआ पाता हूं॥
कैसे समझाउं उन्हें,कि मैं उनसे बफ़ा करता हूं।
आखें हो जाती है नम जब दर्द ए गम बयां करता हूं॥
रूह कांप उठती है जब वो मेरी बफ़ा को कोई नाम नहीं देती।
जीवन के उलझन में खुद की तन्हाई कोई मुकाम नहीं देती||
काश वो शाम फिर आती , जब मैं उन्हें मना पाता|
उन्हें अपनी आगोश में लेता और इस बेगानी दुनिया से दूर चला जाता ||
3 comments:
sir jee wahh
lakin kaun?
Bhai teri kavita padhne ke bad lagta hain jaise main jivan ki sachchai se ru-baroo ho raha hoon.
Teri kavita ke har shabd se gahra lagav mahsus kar raha hoon.
Keep writing.........best of luck.
sundar likha hai...
kya baat hai kise samjhne kee aur samajhaane kee baat ho rahi hai
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