Saturday, March 27, 2010

इश्क बदल गया

वो शाम पुरानी लगती है वो जाम पुरानी लगती है |
अफसानों के आँगन में अब हर काम पुरानी लगती है ||

जिन्दा हूं और रोज जीने की कोशिश करता हूं।

बद्लते जमाने और इश्क के मर्म में मरने से भी अब डरता हूँ ||


इश्क की आहट सुन अब क्यों जिन्दा ही मर जाता है |

अब जाकर जाना है कि दिल की दुनिया में प्यार भी एक समझौता है ||

अरमानों के इस गुलशन में यादें ही आँखें भिंगोता है |

जब सारा आलम सोता है तो ये पगला क्यों रोता है ||

5 comments:

Unknown said...

bahut accha likha hai aapne...
pahle ki bhi ghazle acchin hai...
last stanza is vry nice...

Unknown said...

bahut badiya hai...
last line is vry nice...

Rajeysha said...

प्रि‍य आपके भाव बहुत ही प्‍यारे और सुन्‍दर हैं पर हि‍न्‍दी भाषा में सुधार की बहुत बहुत जरूरत है।

Anonymous said...

ye sher pasand aayaa...

अरमानों के इस गुलशन में यादें ही आँखें भिंगोता है |
जब सारा आलम सोता है तो ये पगला क्यों रोता है

prayaas badhiyaa hai... shabdon ko thodaa aur kasne kee zururat hai... matlab shabd kam kharch karen... baat pooree kahen...

likhte rahen...

Vikas Kumar said...

विचार को और गहराई और भाषा को कसाई की जरुरत है....
शब्दों को पेच की तरह कसना होगा. तब जा कर आपकी बात सुनने वाले या पढने वाले तक ठीक-ठीक पहूंचेगा.
लिखते रहिए.........
भाव सुन्दर हैं.

LinkWithin

Related Posts with Thumbnails