ख़ून से जब जला दिया एक दिया बुझा हुआ|
फिर मुझे दे दिया गया एक दिया बुझा हुआ||
गम लिखूं या कम लिखूं इस खेल में फसा हुआ |
अतीत की वो याद है जो मिल गया खुदा हुआ ||
जिन्दगी के खेल में अकेलेपन का इन्तहा हुआ |
सोचने से पहले उनसे कोई लब्ज था बयाँ हुआ ||
सोच कर चला था मैं ,काफिला ही अब जुदा हुआ |
अपने थे जो बन गए , रकीब सा खफा हुआ ||
वो शाम की चिराग थी, जो बुझ गया जला हुआ |
रोशनी के अँधेरे में ,कुछ खो गया मिला हुआ ||
2 comments:
kyaa baat hai ..bahut hee sundar rachanaa hui hai...aapakee aatmiyata aur prem rachanaa ke saath jhalak rahee hai..
bahut acchee lagee
ghar acchhaa banayaa hai... kaheen-kaheen.. cement aur baaloo ke mishran me chook huee hai... dheere dheere durust ho jaayegi..
saadhuvaad
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