Wednesday, March 10, 2010

एक दिया बुझा हुआ !



ख़ून से जब जला दिया एक दिया बुझा हुआ|

फिर मुझे दे दिया गया एक दिया बुझा हुआ||


गम लिखूं या कम लिखूं इस खेल में फसा हुआ |
अतीत की वो याद है जो मिल गया खुदा हुआ ||


जिन्दगी के खेल में अकेलेपन का इन्तहा हुआ |
सोचने से पहले उनसे कोई लब्ज था बयाँ हुआ ||

सोच कर चला था मैं ,काफिला ही अब जुदा हुआ |
अपने थे जो बन गए , रकीब सा खफा हुआ ||

वो शाम की चिराग थी, जो बुझ गया जला हुआ |
रोशनी के अँधेरे में ,कुछ खो गया मिला हुआ ||







2 comments:

शशि "सागर" said...

kyaa baat hai ..bahut hee sundar rachanaa hui hai...aapakee aatmiyata aur prem rachanaa ke saath jhalak rahee hai..
bahut acchee lagee

Anonymous said...

ghar acchhaa banayaa hai... kaheen-kaheen.. cement aur baaloo ke mishran me chook huee hai... dheere dheere durust ho jaayegi..

saadhuvaad

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