चाँद की चाँदनी में भी मेरा साथ बेगाना लगता है |
पहले मेरी आँखें मरहम और अब छुअन भी अनजाना लगता है ||
साहिल से दूर समंदर सा पीर अपना आशियाना लगता है |
प्यार की राहों में एक कंकड़ भी परवाना लगता है |
जिस हँसी कों बेताबी से देखा करती थी वो |
अब वही खुशी क्यों गम का फ़साना लगता है ||
शिकवा है मुझसे खुशी ना दे पायी पूरी |
पता है शायद उन्हें खुश होने में मुझे एक ज़माना लगता है ||
अल्फाजों और जुमलों में क्या बयाँ करूं|
अब इन बिखरे शब्दों कों पिरोना भी काम पुराना लगता है ||