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Friday, September 4, 2015

एक शिक्षक होने का सुख !!!

2006 में अपने कमरे में छात्रों को पढ़ाते हुए 
बीते सोमवार सप्ताहांत की छुट्टी में कमरा साफ करते हुए कुछ पुरानी तस्वीरें हाथ लगी, कुछ यादें जिसे सहेज कर रखने की आदत है मेरी।

सालों पहले कभी डायरी लिखने की आदत थी, उनके पन्ने पलटकर जब देखने का मौका मिला तो लगा जिंदगी के बेहतरीन पलों को पीछे छोड़ मैं भी 'शहर' हो चला हूँ।

मध्यमवर्गीय परिवार से होने की वजह से छात्र जीवन की अपनी कुछ सीमाएं थी। उन सीमाओं के साथ वाली पगडंडियों पर चलकर रोजगार के सिलसिले में दिल्ली आ गया।

जीवन के कई बसंत बीत गए। कुछ चीजें ऐसी हैं जो आज भी दिल और मन को रोमांचित कर देती है, एक शिक्षक होना और "शिक्षक होने का सुख" इसी कड़ी में जीवन के साथ जुड़ गया, जिसकी स्मृतियां अविस्मरणीय हैं। हालांकि ये सफर मेरे लिए आसान नहीं रहा है पर अतीत चाहे कितना ही संघर्षशील क्यों ना हो उसकी स्मृतियां सदैव मधुर होती है।

उन सभी छात्रों का शुक्रिया जिनकी वजह से मैं शिक्षक बन पाया, मैं एक अच्छा बोलक्कर बन गया और अटूट निश्छल प्रेम और स्नेह मिला। पता नहीं क्यों लेकिन आज उनके बारे में लिखने का दिल कर रहा है। यादों के साये सच में साथ ही होते हैं।

मेरे सबसे पहले शिक्षक मेरी माँ और दादा (बाबूजी) हमेशा से मेरे प्रेरणास्त्रोत रहे हैं जिन्होंने मुझे एक बेहतर इंसान बनाने के लिए अपनी जिंदगी खपा दी। उनको ये दिन समर्पित। इस सफर में मुझे लगभग 6 सालों तक एक शिक्षक के जीवन जीने का सौभाग्य मिला। इसकी भी कहानी एक सामान्य किसान परिवार के लड़के के लिए किसी रोमांच से कम नही है।

NDA की फाइनल परीक्षा में सफल ना होने की वजह से दादा ने डांटकर कहा अब आप अपनी पढ़ाई का जिम्मा उठाओ। ट्यूशन पढ़ाना उस समय मेरी मजबूरी थी। 2002 में BSA की 24 इंच वाली साइकिल चलाकर 250 रूपए के लिए पढ़ाया वो पहला होम ट्यूशन और वो छात्र याद आ रहा है। मैं उस छात्र का सबसे बढ़िया दोस्त था, वह मेरे साथ खूब मस्ती करता था और यहीं से शुरू हुआ मेरे शिक्षक बनने का सफर। कालांतर में इस जीवन से प्रेम हो गया। इसे खूब जिया, खूब पढ़ाया, (17-18 की उम्र में ही ) बच्चों से खूब सम्मान पाया।

दादा की नसीहतें साथ में थी की शिक्षा दान की चीज है सो जहाँ तक संभव हो सका इस आर्थिक युग में इसे दान करने से गुरेज नही किया। उस आर्थिक रूप से विपन्न छात्रों की प्रतिभा का आज भी कायल हूँ।

होम ट्यूशन का सफर एक कोचिंग तक पहुँच गया था, छात्रों की संख्या बढ़ गयी थी और जिम्मेदारी का भाव भी। यहां से मेरे जीवन में एक नया मोड़ आया जब मेरा चयन BHU में फ्रेंच भाषा से स्नातक के लिए हुआ था, लेकिन किसी खास वजह से दाखिला नहीं ले पाया। मेरे छात्र मेरे इस चयन पर दुखी थे लेकिन जब उन्हें पता चला कि मैं नहीं जा रहा हूँ तो उनके चेहरे की खुशी मेरे दाखिला ना ले पाने के गम पर भारी पड़ गया।

आज जब नयी पीढ़ी के छात्र-शिक्षक संबंध बदल रहे हैं। शिक्षकों की गुणवत्ता में बदलाव आ रहे हैं तो मुझे वो वाकया याद आ रहा है जब  वर्ष 2005-06, अगस्त माह की 13 तारीख थी, पूरी रात जोरदार बारिश हुई, सुबह जब आँख खुली तो मेरे कमरे (40x30 हॉल) के सामने वाले आँगन में पानी लबालब भर चुका था, तब मैं ने अपने घर पर पढ़ाना शुरू कर दिया था ( लगभग 13 बैच में 350 से अधिक छात्रों पढ़ाता था)। बारिश दो तीन दिन लगातार हुई, आँगन में खाई होने की वजह से पानी इतना भर गया था कि मुझे लगा अब छात्रों को नहीं पढ़ा पाउँगा या सारे बैच बंद करने होंगे लेकिन सभी छात्रों ने दो-तीन दिन तक उस जमे पानी को निकालने का प्रयास किया हालाकि लगातार बारिश ने उनके इरादों को विफल कर दिया; पर उनका ये स्नेह ये समर्पण आज भी अक्षुण है और चिरस्थायी भी। आखिरकार मुझे ही उन छात्रों की जीवटता के आगे झुकना पड़ा और पढ़ाने के लिए अलग कमरा किराये पर लेना पड़ा।

इस मुफलिसी के दौर में ठिकाना एक दोस्त के यहाँ होता था जिसका कृतज्ञ हूँ मैं। यह सिलसिला चलता रहा। कभी कभी मेरा हौसला भी डगमगाया पर मैं इसमें इतना डूब गया था की इसके बगैर नींद भी नही आती थी। यही मेरा रश्क भी था और इश्क भी।   .

एक ऐसा ही और वाकया तब हुआ जब नवरात्र के दौरान दरभंगा से परीक्षा देकर लौटते हुए बरौनी से बेगुसराय (जन्म भूमि और कर्मभूमि) वापस जाने की कोई व्यवस्था नहीं थी। ट्रेन सुबह 05 बजे थी और मेरा पहला बैच 06 बजे, वहाँ से जाने का कोई साधन नहीं और जेब में मात्र 70 रूपए बचे थे। उस रात भी बारिश हो रही थी मैं लगभग 13 किलोमीटर पैदल ही चला गया। पाँव में छाले पड़ गए थे, राष्ट्रीय उच्च पथ (NH-31) पर लम्बी ट्रक सांय-सांय पास करते हुए डरा रही थी। लगभग दो घंटे पैदल चलने के बाद घर पहुंचा। सुबह छात्र अपने नियत समय पर पहुँच गए लेकिन मेरे पढ़ाने के इस जज्बे और पंचर हालत को देखकर सबों ने खुद ही छुट्टी कर ली।

पिछले साल (एक मुलाकात के दौरान पता चला) कुछ छात्रों के पास आज भी अपने पहले दिन का नोट संभालकर रखा है जो मैं ने अपनी लेखनी से थिन पेपर पर लिखा था, या जिसमें पढ़ाने से पहले मैं थॉट ऑफ द डे लिखता था। यह देखकर दिल वाकई गद-गद हो गया और मन सेंटी।

एक शिक्षक को जिस तरह का जितना मातृ-सुख या पितृ-सुख या सम्मान मिलता है, उतना ब्रह्मांड के किसी मां-बाप को नहीं मिल सकता है। आज यह लगता है कि वो छात्र ना होते तो मैं यह सब नहीं कर पाता। वाकई मैं सौभाग्यशाली था कि आप लोगों जैसे छात्र मिले। मैं आज भी उन सब छात्रों को याद करता हूँ और उनके सफल जीवन की कामना करता हूँ। आज भी जब कभी कोई भी भूले बिसरे मुझे फोन करता है तो उनकी आवाज से मेरे अन्दर का वो शिक्षक जाग जाता है। उन छात्रों का पुनः शुक्रिया जिनकी वजह से मैं कभी शिक्षक बना। इस कसौटी पर कितना सफल या असफल हुआ ये तो वही छात्र बताएंगे।

Monday, August 24, 2015

सच्ची प्रीत है मांझी...!



कुछ कहानियाँ ऐसी होती हैं जो अखबार के पन्नों तक सिमट कर रह जाती हैं, कुछ डिनर के वक्त चर्चा का विषय बन जाती हैं, कुछ कहानियाँ टीवी के लिए ब्रेकिंग न्यूज़ (हॉट टॉक) और कुछ ऐसी होती हैं (जिनमें सत्य होता है), जिसकी आपने कभी कल्पना न की हो, उसके साथ सिर्फ बड़ा पर्दा ही न्याय कर पाता है ऐसे ही दशरथ मांझी के सच्चे प्रेम की सच्ची कहानी है 'मांझी -The Mountain Main'।

ऐसी बहुत कम फिल्में होती हैं जिन्हे देखकर आपको कुछ लिखने का दिल करे या वो आपके दिमाग में घूमती रहे लेकिन इस फिल्म में 'सांची रे ,सांची रे मांझी तोरा प्रीत है सांची.....' जैसे शब्द अभी भी प्रतिध्वनि की तरह सुनाई दे रहे हैं।

आज से सात साल पहले जब दिल्ली आया था तो एक मित्र ने मांझी की कहानी बतायी थी, तब भी आश्चर्य हुआ था कि कोई ऐसा कैसे कर सकता है! वाकई प्रेम में एक अदम्य साहस है, मांझी के "विरह में भी एक अजीब प्रेम" है।

उसका एक प्रेम फगुनिया से है लेकिन उसकी मौत के बाद अपनी जान पर बनने के बाद दूसरा प्रेम पहाड़ से भी है, प्रेम के इन दो अलग-अलग रूप को देखकर कभी-कभी आँखें सजल हो जाती हैं।  

ऐसा काम सिर्फ एक सनकी, ठरकी या (बिहारी भाषा में) बौरा गया और प्रेम में डूबा इंसान ही कर सकता है। बेमिसाल छायांकन और सहज संवाद इस फिल्म की सबसे मजबूत कड़ी है।

फिल्में खान, कपूर और अख्तर भी बनाते हैं और वहीं इरफ़ान, नवाज़ और मेनन भी। दोनों तरीके की फिल्मों में अंतर बिलकुल स्पष्ट दिख जाता है।      

सच और कहानी में फर्क होता है, मांझी एक सच है इस समाज का, वर्ग का, उस जातिवाद का जो आज भी मौजूद है और सबसे अधिक एक ऐसे इंसान का जिसने प्रेम और विरह की बीच कुछ ऐसा किया जिसे रूपहले पर्दे पर नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी ने जिया है। सरफरोश में 54 सेकंड के किरदार से मांझी के 2 घंटे 04 मिनट तक का सफर नवाज़ का मार्केट रेट तो फिक्स कर ही देता अगर यह फिल्म लीक ना हुई होती।

इस फिल्म को देखते वक्त मुझे 'पान सिंह तोमर' के इरफान की याद आने लगी। जिसे बनाने के बाद एक साक्षात्कार में तिग्मांशु धूलिया ने कहा था कि अगर "हीरो (Khans) को चंबल में शूटिंग के लिए ले जाया जाए तो उनके नाक से खून आ जाएगा।  

कुछ फिल्में हीरो और 'अभिनेता' के बीच का अंतर बताती हैं मांझी उनमें से एक है। केतन मेहता ने एक बार फिर "शानदार, जबरदस्त और जिंदाबाद" फिल्म बनायी है।

कभी-कभी तो ऐसा लगता है मानो पहाड़ भी एक जीवंत किरदार हो, नवाज़ का उन पहाड़ों से बात करना शाहरूख के घोड़े से बतियाने वाले (बनावटी) किरदार से लाखों गुना बढियां लगता है। भारी-भरकम संवाद को सहजता से कहने की कला में जैसे उन्होंने महारत हासिल कर ली हो 'जैसे इ प्रेम में बहुत बल है बबुआ' या अखबार निकालना पहाड़ तोड़े से भी ज्यादे मुश्किल है क्या ।

फगुनिया के छोटे से किरदार में राधिका आप्टे सही लगी हैं वहीं पंकज त्रिपाठी और मुखिया (तिग्मांशु धुलिया) भी अपने किरदार के साथ फिट बैठे हैं। 

यह फिल्म भले ही सौ करोड़ वाले क्लब में शामिल ना हो लेकिन अवार्ड तो जीतेगी ऐसी उम्मीद है।

प्रेम और विरह की बीच कभी पहाड़ भी किसी का साथी हो सकता है इसे भी कमाल तरीके से दर्शाया गया है। सिनेमा हॉल में इस फिल्म को देखने वाले दर्शक कम थे, कुछ दर्शकों को अपच लग रहा था और बहुतों ने तो डाउनलोड कर ही देख लिया होगा।

एक व्यक्ति अपनी जिंदगी खपा देता है एक फिल्म बनाने में, उस पर रिसर्च करने में, एक अभिनेता उस किरदार को जीने में वर्षों लगा देता है और कुछ लोग उसे डाउनलोड कर देख लेते हैं, ऐसी फिल्में कम बनती हैं, ऐसी फिल्मों को हॉल जाकर देखना चाहिए।

वैसे 'On a lighter note'  मैं इस फिल्म को डाउनलोड कर देखने वालों के लिए दो मिनट का मौन रख लूंगा। :P :P

उम्मीद करता हूँ कि इस फिल्म के सफल होने के बाद रियल लाइफ के मांझी (22 साल तक लगातार पहाड़ तोड़ने वाले) के परिवार की स्थिति भी थोड़ी सुदृढ़ होगी। एक और मांझी अभी बिहार के आने वाले विधान सभा चुनाव में सक्रिय भूमिका निभाने वाले हैं लेकिन इस माउंटेन मेन मांझी का राजनीतिकरण ना हो तो खुशी होगी।

रील लाइफ के मांझी को इससे भी बढियां और ढेर सारी फिल्म मिले । मांझी एक बेहद ही उम्दा और शानदार बनी फिल्म है, नवाज़ का फैन तो मैं पहले भी था लेकिन इस फिल्म को देखकर फैनेटिक हो गया, इस बन्दे की फिल्म का इन्तजार करता हूँ।

आपने नहीं देखी है तो उस रियल लाइफ के मांझी के लिए ही सही इसे एक बार देख लीजिए।   

Monday, December 24, 2012

Will miss you Sachin!

Being the die hard fan of Sachin the first sentence that comes in our mind after his retirement from ODIs is that flick would be missed; the delicately placed shot off the pads, the trademark straight-drive with the manufacturer’s logo so visible; the punch to cover; it will all be missed.It was an amazing night of April 2, 2011 when Sachin lived his dream as India won the World Cup after 28 years at the Wankhede Stadium.We will miss every run scored by you and every ball that you have faced to serve the Nation.

I could feel the tears in my eyes twice first when India lifted the world cup after the gap of 28 years and second when Sachin called it a day from ODIs.


yuvraj singh ‏@YUVSTRONG12

Yuvi considers him as GOD,there is no dearth of doubt that he is really god as Sachin not only inspired him in his lean phase but he won the world cup for this living legend.This remarks says much of it "In my heart and fellow indians! The pride of our country I salute to u for ur contribution to indian cricket @sachin_rt this has been retweeted 1501 times shows the love and affection that Sachin holds.  

Not a sudden decision:

He must be thinking for this day since long time,he must have talked with family and his friends.The decision to say good bye to one-day cricket was not sudden. For some time he had come to realise that the body was not listening to his brain. Fatigued legs and arms at the end of the day were clear indication to Sachin that he had to take the call. Test or one-day cricket, the choice was easy. He had valued Test cricket higher even though his recent form has meant a dent in his reputation.Sachin has conveyed a strong message to the world of cricket that Test cricket is still the best cricket.He would have retired from test why from ODIs.

Why not good bye on ground:

When you would have seen Sachin's retirement news either on TV or have heard it one question must have come through your mind why Sachin has not announced his retirement playing ODIs why living off the field.Sachin is great in test but greatest in ODIs and he will remain as same in the heart of millions of fans.I am still searching that what prompted this tough decision to quit ODIs?

Keen Observer:
Sachin was a great observer of the game either doing shadow practrices or seeing the wind blowing direction on the field are some important things that you must have witnessed during his palying game.He was a keen observer of the game and always thinks for the pride of country as he hanged his boot to prepare for 2015 world cup.

Experts say:

Sunil Gavaskar

Former India captain Sunil Gavaskar says consistent criticism might have played a part in influencing Sachin Tendulkar's decision to quit one-day cricket and it would have been fantastic had he gone after completing 50 ODI centuries.

Harsha Bhogle ‏@bhogleharsha
on such a sad day for india a man who gave more joy than anyone else says he has had enough of odi cricket.

Sachin you are legend and will remain as the legend either you play or not.The moments that you gave to the nation will always be in the bottom of the heart.One sentence that i will always say is we will miss you in number 10 blue jersey.

Virat Kohli

"Emotional moment to not see the person who inspired me to play for india not play one dayers anymore.hats off paaji.we all love you.respect"India batsman  via Twitter



Rahul Dravid

If you look at the statistics, his greatness becomes even more evident in the sheer volume of runs he has scored and the huge gap between him and the next batsman. To bat consistently at the top-order and the aggressive manner in which he did that is a staggering achievement."
Commentator and former India batsman






Saturday, March 17, 2012

I am Sachin........


Cricket's most prolific batsman stressed on his human side through the media-interaction. “I am not God, I am a cricketer and I am Sachin.”

This may be too personal but I don't feel very happy when cricket is criticized,I find my love for cricket assaulted from all directions.We lost against Bangladesh,there is no denying in the fact this is really an astonishing part of the game.

Even after that It's an honour and privilege to say that we are the habitats of a country from where the God of cricket Sachin Tendulkar hails.Sometimes we switch off our TV sets,we become angry and say will never watch cricket now but again we were drawn to this game that is the beauty of this game.

The reason of love:

Finally Sachin got his 100th ton.It is a great milestone and no one else is going to get there, but we don't watch a game merely for a milestone. We watch sport for the joy of seeing great performances not to bother that the defeat is only due to reaching the milestone.As a human being this is my question that would you love to see the matches only for milestones.The answer would be an obvious no.

How humble he is:

The statement made by little master just after reaching the milestone was never leave chasing your dreams,it may come true.The rough phase of 369 days have raised many questions,the cricket pandits were suggesting Sachin to hang his boots.The person who has served the Nation since last 22 years will not take minutes to come@ this decision to say good bye to cricket.

Rubbish talk shows:

Now there will be no talk or debate show on the news channels,there would be no TRP games.Sachin will play with an ease now a much relieved man must be feeling himself in comfort zone.Of course as he said “Yes, I have to be honest. I am human and I have emotions so I was frustrated. It does play on your mind,” Tendulkar told reporters at the post-match press conference.This shows the humbleness of this man.

Sachin Tendulkar admitted that the intervening journey between his 99th and 100th international hundreds, was one of the toughest he has faced in his career.

Perhaps the person who really loves cricket and this legend will have no question to ask now ,this is my humble request to all the cricket lovers to keep mum on the rubbish question of retirement,let him enjoy the game as longer as he wants.

Monday, October 17, 2011

From Sitab Diara to Delhi

The senior most leader of BJP L.K.Advani started his “Jan Chetna Yatra” form Sitab Diara.It is the birthplace of Jaiprakash Narain who is considered the father of agitation against corruption.

The journey from Somnath to Sitab Diara has witnessed lots of ups and downs.Advani is tagged with "PM in waiting" for last ten years.Will he be able to eradicate this tag .will this yatra do a favour to him to be the Prime Minister of India.

This yatra is being considered as his last chance to grab the opportunity to be the Prime minister.will he be the PM ,will the country witness the change,there are many more questions in the mind of the general people.The specific word Jan chetna reveals that the habitats of India are sleeping.BJP is trying to make them awaken.The internal rift amongst the leaders in BJP is known to all.Either the Sadbhavna mission of Narendra Modi or the question of projecting someone as the PM candidate is a matter of debate.what so ever it happens one thing has become very obvious that the political scenario of the country is changing with the amount of corruption and scams revealing day by day.

The birth of Anna and Anaagiri has raised the voice against govt.The initiatives that should be done by the opposition did by Anna and Ramdev.May be the opposition got the alarm.The common notion strike the iron while it is hot turned in make the iron hotter by striking it hard.BJP still is not aloof from the policy of hidutwa.RSS doesn't want Advani,Modi is showing his strength going beyond the politics of the state,in such condition the common people think that who is going to be the candidate of PM either Advani,Modi or anyone else as it has been always said by the party members that there are many more person who can be projected for the post of PM at the high time.

What is the destination for this yatra is not concrete,BJP is trying to regain its roots.This would be worthless to point out that not only the rath yatra of Advani is detined to Delhi but BJP is also heading its destination to Delhi to get the reign.The commoner are suppressed with price rise and inflation ,the corruption is also neck headed.

Now this would be worth watching that would the PM in waiting get the thrown or retire from the active politics.BJP has the chief ministers in five states and alliance in one(Bihar).Now the calculus of politics reveals that the integration of the power of these states may prove worthy in the centre also.There is no dearth of doubt that Annagiri is also propelling the people to bring the change.2014 loksabha elections is not far, all the political parties are cruising on the politics of rathyatra.

This would be very interesting to see that which political party is going to destined his rath to the throne of Delhi.Till then wait and watch analyze the politics of everyone.The tag of "PM in waiting" will loom on the haed of Advani or will he be the PM .

Thursday, October 13, 2011

Full stop on ghazal singing

If you would try hard to remind the name of ghazal singers the first name in your mind will pop up that is Jagjit Singh 1941-2011:Remarkable humility in how he approached his art and forthrightness in his beliefs set apart this singer who 'caressed' words.He was popular as "Jeet" for his kin but couldn't win the battle of life.

When i got the news of Jagjit Singh's brain hemorrhage kidding to my colleague i said that make special pages for him.2011 is witnessing the deaths of so many prominent personalities,may be that's why but this was really absurd when i got the shocking news of his demise.

Listening his ghazal was just finding the eternity the wordings,the utterances and the lively performance.

Everything was there if you would have as lucky to watch his live concert.Born in 1941 in Sriganganagar, Rajasthan,to Punjabi parents,he learnt music at the feet of Pandit Chhaganlal Sharma in the early years of his life, then under Ustad Jamaal Khan of the Sainia gharana. His grooming would eventually ensure that unlike other ghazal singers who attained popularity in the ‘80s only to fade away, Jagjit was not only able to ride a crest but guard against any trough.

I missed the live shows as well as a glimpse of him.people these days even live in 80 and 90s why the good people die early.This is the life and the truth about it.Ghazal has depth and its own meaning and expression.There is a very common notion that (Ghazal wahi sunta hai jike paas akal ahoti hai)the mean of saying so is one who ocuupies the deep understanding listens the ghazals and understand it.

A self portrait character for himself in the age when the identification of ghazals was to established there are not many more names to count on the fingure,Talat Mehmood, Noor Jehan and some more names but he gave a dizzy height to the ghazal in the Indian film industry and left the inspiration for the kid like Ranjeet Rajwada, a SA RE GA MA PA contestant who got the future of gazhal awarad for his extra-ordinary singing.

A voice which carved the ghazal singing will not be heard now.There is a complete void in this arena.people prefer to listen now Jazz,Discathics rap and bhangra not the ghazals.The sweet sound of Jagjit will remain in the hearts of millions but only to remember.This is really a great loss not only for the Music industry but also for the fans who loved him form the core of heart.

Being a music lover the words don't have the capability to express the feeling,love,sympathy and sorrow to loose such an eminent personality of the music industry.Now only his songs will be on the leaps in the isolation.

He is survived by his wife,Chitra Singh.

Sunday, September 25, 2011

"Controversially Yours" is a controversy


Never far from controversy in his playing days, Shoaib Akhtar has kicked up quite a storm in India with his autobiography “Controversially Yours”, questioning the integrity of most players he came across.

He has picked this time a player who is regarded as the God not only in India but also abroad and an ultimate calssy player Rahul Dravid.Both of them don't keep place as the match winner for India or the finisher.This may be the matter of the debate but one thing is very candid that Sachin has never ever played cricket in fear.

Monday, August 1, 2011

Write off Dhoni now


Luck can not make you every time successful.sometimes there is an essential need of labour and chance to give a push at the ladder of success.Now this is the high time that Dhoni will be write off now.Many more brands to his credit a very successful captain, the People's choice award nominee for the ICC,Captain Cool and many more adjectives you can add but as a player he has been proving nothing but a leader.

Can you remember a knock from Dhoni which can be called a captain's knock in favour of the team.except one or two early span of his life one against Pakistan and other against Sri Lanka or may be the one in the final of the 2011 world cup.An athlete has to be consistent either tomorrow is not yours'.India have produced many more captains (Ganguly ,who changed the entire attitude of Indian team towards cricket, but now had no one to purchase in IPLs )and this is a country where the players are worshiped as the God and they can be eradicated even from the memory within the fragment of second.

Don't assume that this is being written as the harsh criticism on Dhoni by me only because he could not score in the last two tests against England.He has been being followed by me since he was not amongst runs either in the One dayers or in the Test cricket.Only the leading quality in you can not make you stir in the squad for too long .There are many names in the queue like Gauty and Virat who are ready to shoe in at the stage of leading.Even after not being very technically sound he achieved the consecutive successes as captain, there is no dearth of doubt in it.

The inconsistency since last one year,if you want to take a glimpse take this India-Eng series only a few runs to count for him.Australia reigned for the 15 years not only because their players were performing but also because Ricky Ponting (Punter) had performed consistently.The leading quality is not only with the gloves and with the adjustment of the players or the statement from the add (2007 का T-20 वर्ल्डकप टीम में कई अनुभवी गेंदबाज़,लेकिन मेरे जेहन में कुछ और ही था )may be he has been crossing through the lean phase but now this media and the so called cricket pandits are going to leave no stone unturned to make a mess of his poor performance and taking the silly decisions like bowling in the Lord's test.

The result of the Nottingham test is also expected another humiliating defeat.Now wait and watch for the Media prone Dhoni that how he is going to face these crunchy situations.I have written off Dhoni this time.

Friday, June 24, 2011

The wall still stands tall


I don't have a Telivison set,used to watch cricket scores on Cricinfo.com ,it was 12:45 Pm, Rahul Dravid was playing on 93 .I thought will Amit Mishra do a fvour to him to reach another ton.By refreshing the score boards for completely 15 minutes i got that the wall has got another century to his credit which later on proved a 63 run win over WI.He is the lone centurian who has scored a ton and India ended on the loosing side only once in his 32 tons.

Rahul once was in trouble not for making runs early this year in the test matches concluded in South Africa ,the debate was in the air that he must take his retirement with dignity but once again he proved that why he has been rewarded as "The Wall "or "Mr. Dependable" like adjectives. Dravid's passion and eagerness towards cricket haven't changed in the last decade and a half. He is still intense, patient, and willing to work hard to prepare for each and every game .

Remember just three days ago he landed in Kingston(Jamaica) before the match and did the batting for the complete 500 minutes . At the age of 39 the fitness that speaks itself,the greet for the runs and the devotion towards game is the key factors for which the world salutes him. The wall has many more bricks in his lexicon to make the foundation for the youngsters of India who has just stepped up in the cricket .Hey buddy learn form this guy and pour out your best for the team whenever you get the chance.That is the spirit Rahul still is having with.Abhinav Mukund ,Virat and Murali vijay must learn from this legend.

When in the early span of my life i watched this cool headed batsman playing this shots,wondered that he has the complete maturity that should be in a batsman for playing too long. 15 years have passed since than and i don't find any changes in his style and the Atheletic attitude.Can you remind that when have you heard that Rahul has been not selected in the squad due to his fitness.Not much has changed since then. He is still as intense as ever. He has not too many advertising brands to his credits except Kingfisher jingles.

The criticisers who had advised directly or indirectly to take a U-turn from the test career will now be kept mum .As it turns out, the way he knew best has so far brought him 12,215 runs in Test cricket, and the number tends to seal most debates.Thanks to the trio Sachin,Rahul and Laxman who have brought the dignity to Indian cricket.The youngsters should try to learn from these legends by expending most of the time by making a healthy conversation.

I can't predict that how long Rahul is going to play for India.but one thing i can assure that whenever he will play we would love to watch him .

Friday, June 17, 2011

Raina stands poor!


Indian team wrapped up the series against West Indies 3-2 but there are many more reasons of concern. The bench strength of the Indian team have been tested once again whether they proved that the winning habit continued in the sub continent. But the leading quality of Suresh Raina may be questioned and why not it should be the side leading with 3-0 wrapped up the series 3-2.why not 4-1 or 5-0.As we have the habits to expect more and more.

Raina Stands poor as Captain

Even after the absence of most of the senior players the Indian team won the series that is the positive thing to be counted on the fingers, but just at the beginning of the series some of the prominent cricket experts have proclaimed that Raina is stepping in the shoe of Dhoni but when it comes to the leading quality he has to work on most of the things as in the last ODI the team could not play even the 50 odd Overs .The poor selection of shot selection from Raina once again deprived him among the runs. The leading quality of the captain is to bring the side on winning note,but every day is not yours proved candid with Raina.

Rising Rohit

Rohit Sharma was the guy who was being closely watched on this series. Just after the completion of the ILP season 4 he became the part of the side and proved that what may come, he will use this opportunity and grabbed the title of Man of the series for his performance in this series .The selectors must have watched him closely and he will be rewarded for his show in near future.

Bench strength Tested

There is no dearth of doubt that this Indian side with its bench-strength have been tested,many players have performed well either Parthiv Patel with the bat not with the gloves impressive Rohit or Vinay kumar.

Gayle less show

Gayle less West Indian side and the absence of Pollard in couple of matches were the reasons unless they could have made a better show of this series.Well remind you that Gayle ended the IPL-4 as the leading run getter. Last but not the least we can say that the home team by wrapping up this series will carry on with some amount of confidence in the test matches that is scheduled to be played from june 20 .

Indian team will be perhaps with its full strength in the test to be played there and WI will tray to give the opponent the tough fight with their in -form pacers on bouncy pitches.


Thursday, June 9, 2011

बयान से बवाल तक


शाम ढल चुकी थी एक और अनशन समाप्त हो गया था ,अन्ना की चतुराई का एक और शो कई सवालों के साथ अपना बोरिया बिस्तर समेट चुका था |लेकिन कुछ सवाल अभी भी जनमानस के मस्तिष्क में कौतुहल मचा रहे थे | सरकार की कुटिलता को बखूबी देखा जा सकता था |चेतावनी दर चेतावनी उनके लिए शायद परेशानी का सबब नहीं है और इसलिए अब वाकयुद्ध का सिलसिला अपनी चरम पर पहुँच चुका है |

11 हजारी सेना'

रामदेव बाबा के "11 हज़ार युवा और युवतियों की एक 'सेना' "बनाने की बात ने देश की राजनीति में हलचल लाने में कोई क़सर नहीं छोडी है |उधर दूसरी तरफ चिदम्बरम साहब का दूरदर्शन को दिए गए साक्षात्कार में यह बयान कि इन्होने (रामदेव )ने अपनी मंशा जाहिर कर दी है ,और अपना सच्चा रंग भी |फिलहाल वाक् युद्ध ही सही लेकिन देश की राजनीती में उठापटक ने कहीं ना कहीं " धर्म की राजनीति " का रास्ता अख्तियार कर दिया है |

बाबा को संघ का साथ

इस सच को झुठलाया नहीं जा सकता है,कि बाबा रामदेव को प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से संघ का साथ तो मिल रहा है | अशोक सिंघल का हरिद्वार जाकर बाबा का हाल चाल लेना ,भारतीय जनता पार्टी का खुला समर्थन ,साध्वी रिताम्भरा का मंच पर उनके साथ होना |रामदेव बाबा के बयान कि जरूरत पड़ने पर इस सेना की संख्या ११ हजार से बढ़ाकर ११ लाख भी की जाने की बात पर जयंती नटराजन के विपक्ष से पूछे गए सवाल 'क्या सशस्त्र विद्रोह की तैयारी है? 'ये सारे तथ्य इस बात का पुख्ता प्रमाण हैं कि देश की राजनीति एक नयी दिशा और दशा तलाश रही है

रामदेव का उग्र बयान :

बाबा रामदेव भले इतने उग्र क्यों हो गए ?क्या उनका धैर्य जवाब दे रहा है ? क्या उन्होंने अपना असली रूप देश के सामने रख दिया है ? जाने और कितने सवाल क्या रामदेव बाबा का ऐसा भड़काऊ बयान यथोचित है ?जैसा कि चिदम्बरम साहब ने उन्हें चेतावनी भरे लहजे में संकेत दिया कि वो अपना काम करें और प्रशासन अपना काम करेगी |इन्होने तो बाबा रामदेव को आर .एस. एस का साथ होने तक की बात कही है ,|देश की वो सरकार जिसे जनता चुनती है ,आज वही जनता इसके खिलाफ है |राजनीति शब्द को चरितार्थ करते हुए सरकार ने अन्ना और रामदेव के समर्थकों को बांटने की भी भरपूर कोशिश की लेकिन आज इन दोनों को सुर साथ हैं |

वाक् युद्ध का सिलसिला

वाकई इस देश की राजनीति में फिर एक बार भूचाल आया जैसा मालूम होता है |देश की दो बड़ी राजनीतिक पार्टियों में रामलीला मैदान काण्ड के बाद छिड़ा वाक् युद्ध महज देश की जनता को गुमराह करने का एक नायाब नुस्खा मात्र है या फिर महंगाई और भ्रष्टाचार जैसे गंभीर मुद्दे पर घिरी सरकार का अपने दामन को बचाने की कोशिश जिस पर शायद दाग लग चुका है |बाबा रामदेव के मंच पर साध्वी ऋतंभरा का साथ बैठना,पाँच हजार की भीड़ की अनुमति माँगने के बाद लांखो की भीड़ जमा कर लेना सरकार के लिए डर का सवब और आधी रात अपनी बर्बरता दिखाने का एक कारण बना, ये कितना सच और कितना झूठ है ये भले ही विवाद का विषय हो सकता है लेकिन एक सच जो सामने रहा है वो यह कि सरकार की कुटीरता और चालाकी में ये फस गए से मालूम होते हैं

महर्षी पतंजली ,स्वामी विवेकानंद,गौतम बुद्ध का सैदव उदाहरण देने वाले रामदेव बाबा को भी देश की अखंडता और एकता का बखूबी ख़याल रखना चाहिए |लोग उन्हें बाबा कहते हैं और वो अगर सत्याग्रह की बात करते हैं तो उनके मन रूपी शब्दकोष में आवेश जैसे शब्द की कतई जगह नहीं होनी चाहिए | हो सकता है रामलीला मैदान की रावण लीला में लाठियां उन्हें भी खानी पडी हो, लेकिन इसका ये कतई मतलब नहीं है कि सत्याग्रह की नीव पर आक्रोश के ईंट का महल तैयार किया जाए जिसे किसी भी राजनीतिक और कूटनीतिक थपेड़े से गिराया जा सके |

चोर सिपाही का खेल

अँधेरे को कोसने से अच्छा है कि है कि हम रोशनी की तलाश करें

इंतज़ार और सही

अब जरूरत है धैर्य और संयम की साहस और विवेक की सहनशीलता और चतुराई की जिसके जरिये सरकार से अपनी बात कैसे मनवाई जाए|बाबा रामदेव और अन्ना भी तो उसी आम आदमी के दायरे मे हैं |ये दोनों शब्दों के कुशल कारीगर भी हैं और आम जनता के प्रणेता भी ,अब इंतज़ार सिर्फ इस बात का है देश की त्रस्त जनता को इनसे कब निजात मिल पात है और देश की राजनीती का भविष्य किस दिशा में जाकर स्थिर होगा |






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