Wednesday, October 21, 2009

काश ऐसे होते !

जिन्दगी नायाब तरीके से हम क्यों जीते हैं।
रातें हो जाती है कम , दिन को पीते हैं॥

सोचा था कल होगा अच्छा , आज को जीते हैं।
अपनों में रह्कर भी हम गैरों से होते हैं॥

नयी शहर है नयी चुनौती सोच में हम दूबे रह्ते हैं।
उनकी यादों में अक्सर यूं तन्हा खोये रह्ते हैं॥

गगन जैसे झुकते हम भी , होती एक कंचन काया।
सबसे प्यारे हम भी होते , अगर होती न संग माया॥

सपनों के शीशमहल भी अब टूटते दिखते हैं।
काश कोइ होता अपना ये हम किससे कह्ते हैं ॥

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