Thursday, January 28, 2010

सानिया की समझ !


भारत की टेनिस स्टार सानिया मिर्ज़ा की सोहराब मिर्ज़ा से सगाई टूट गई है|टेनिस की दुनिया की एक खूबसूरत बाला ने इसे खुद का फैसला बताया है |शायद सानिया समझ गयी ! टेनिस की सनसनी कही जाने वाली सानिया का यह, या तो परिपक्व समझ है या फिर खेल से उनका प्रेम यह तो अभी भविष्य के गर्भ में है लेकिन एक बात तो स्पष्ट है की इन खिलाड़ियों कों आदर्श मानने वाले भारतीय नवोदित युवा खिलाडियों के लिए एक आस फिर जग गयी है | क्या सानिया फिर से कोर्ट पर मेहनत करते हुए ज्यादे और जिन्दगी कों सहजता से लेते हुए कम देखी जायेंगी ?

कुछ दिनों पहले सानिया मिर्जा़ की ओर से बयान आया था कि वो शादी के बाद टेनिस से संन्यास ले लेंगी| सानिया के इस बयान ने उनके चहेतों का दिल तोड़ दिया था |लेकिन इसे किस्मत का खेल कहें या देश कों टेनिस की दुनिया में कुछ और सम्मान दिलाने का मौक़ा |एक टेनिस प्रेमी के रूप में देश के तमाम लोग उन्हें खेलते हुए देखना चाहेंगे|अंतरराष्ट्रीय रैंकिंग में 34 वें नंबर तक पहुँचने वाली सानिया का करियर चोटों से जरूर प्रभावित रहा है लेकिन वो शायद इसे बेहतर कर सकती है |

साल २०१० की शुरूआत सानिया के लिए ज्यादे अच्छी नहीं कही जा सकती है | उनके सगाई के बाद के बयान से सगाई टूटने तक हर एक टेनिस प्रेमी के मन में एक सवाल उभर रहा है की क्या वो फिर से उसी रंग में दिखेंगी जिसके लिए उन्हें इतनी सोहरत मिली थी |क्या उनका कैरियर ढलते सूरज की तरह तो नहीं जो पश्चिम दिशा की और चल चुका है ? अब हम सब कों इस बात का इंतज़ार है की क्या सानिया की समझ उनके लिए कुछ अच्छे पल लाएगा ?
वक्त की नजाकत कों दखते हुए तो बस हम यही कह सकते है की खुदा उनकी जिन्दगी में समिर्धी और खुशहाली दे |उनका निजी जीवन खुशियों से भर जाए , और वो देश कों टेनिस के रैकेट के माध्यम से चन्द और खुशियाँ दे पाएं आज जिसे वो पारस्परिक समझ कह रही है क्या ये उनकी जिन्दगी में एक खिलाड़ी के रूप में उन्हें फायदा देगा या नुकसान ये तो आने वाला समय ही बताएगा |

Tuesday, January 26, 2010

गणतंत्र पर शाब्दिक हमला


देश में कल गणतंत्र की धूम दिखी इसी बीच एक और बात जो प्रचुर मात्रा में देखने कों मिली वो थी कागजी मीडियाके महारथी का देश के नाम शाब्दिक पटुता का एक नया अंदाज़ | ये कोई नयी बात नहीं थी |शब्दों के कुशलकारीगर गणतंत्र पर देश की खामियों कों गिनाने में लगे हुए थे |सुबह से लेकर शाम तक मैं ने करीब दस आलेखऔर कुछेक ब्लॉग पढ़े सबके सब शाब्दिक चिंता में डूबे दिखे वजह देश की आजादी के लम्बे अरसे बाद भी देश केस्थिति का चरित्र चित्रण |मेरी समझ में एक बात बिलकुल नहीं आयी ये आखिर कलम के जादूगर कहना औरकरना क्या चाहते है |
क्या देश की खामियों कों गिनाकर कोई क्रांती लायी जा सकती है जिसकी नीव बदलाव के साथ रखीजायेगी |क्यागणतंत्र पर राजपथ की परेड कों फिजूलखर्ची कहने से गरीबों का पेट भर जाएगा |कलम के बादशाहों कों शायद येपता नहीं की उनके शब्द में अब वो ताकत नहीं है, जो गांधी, दिनकर और भगत की लेखनी में हुआ करते थेआखिर ये अपनी शाब्दिक पटुता कों काली स्याही के रंग में रंग कर साबित क्या करना चाहते है |चन्द पैसों केलिए कलम चलाने वाले ये महानुभाव लेखनी से ही देश की गरीबी ,भूखमरी और नक्सलवाद जैसी समस्याओं कासमूल नाश करने का बीड़ा उठा रखा है |

ये सवाल उन प्रबुद्ध जनों से नहीं है जो देश की उपलब्धियों कों धता बताते है और शब्दों में ही सुधार की गुंजाइशदेखते है |काश ऐसा हो पाता ! सही मायने में ये लोकतंत्र से ही एक सवाल है |जहाँ गणतंत्र और स्वतंत्र होने के भीदिवस कों मनाया जाता है |शाब्दिक प्रबुधता से देश का कल्याण नहीं हो सकता है |इस देश में लिखने वालो कीकोई कमी नहीं है जो अपनी शाब्दिक पटुता से देश हित की कागजी बातें करते करते खुद कों ख़तम कर लेते हैलेकिन सुधार के नाम पर बासठ सालो में तो कुछ भी देखने कों नहीं मिलता |ये सवाल सिर्फ सिर्फ प्रबुद्ध जनों केमन मष्तिष्क में ही नहीं उभरा है , मैं और मेरे जैसे पत्रकारिता के कुछ मेरे दोस्त भी इस दौर में शामिल है |शब्दका अस्तित्व ही क्या है .....क्या आग कहने से आग जलने लगती है , क्या पानी कहने से प्यास बुझ जाती है |नहींबिलकुल नहीं |
सब अपना भड़ास सिर्फ शब्दों में निकालकर शांत हो जायेंगे फिर अगले साल गणतंत्र आयेगा और खुद कों आमआदमी के लेबल से चिपकाकर ये अगली बार फिर लिखेंगे जिनके इन्हें चन्द पैसे मिल जायेंगे | शब्द देश काकल्याण करते तो ये कलम के जादूगर देश और देश की आम जनता के लिए सरकार का ध्यान आकृष्ट करवा पातेदेश के गणतंत्र और स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या और दिवस पर ऐसे ही आलेख लिखे जायंगे ,हम जैसे मूकपाठक उसे पढ़कर मौन रहने का संकल्प लेंगे और अगली बार फिर देशहित और समाज के समग्र विकास कीपरिकल्पनाओं में खुद कों शाब्दिक शेर साबित करेंगे |
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कैसे समझायें उन्हें ?



उनकी एक बात पर पर मैं हैरां हो जाता हूं।

मेरे हाल पर जब उन्हें रोता हुआ पाता हूं॥


कैसे समझाउं उन्हें,कि मैं उनसे बफ़ा करता हूं।

आखें हो जाती है नम जब दर्द ए गम बयां करता हूं॥


रूह कांप उठती है जब वो मेरी बफ़ा को कोई नाम नहीं देती।

जीवन के उलझन में खुद की तन्हाई कोई मुकाम नहीं देती||


काश वो शाम फिर आती , जब मैं उन्हें मना पाता|

उन्हें अपनी आगोश में लेता और इस बेगानी दुनिया से दूर चला जाता ||

Sunday, January 24, 2010

विज्ञापन पर विवाद


अंगरेजी में एक कहावत है “Haste is sure to make us go wrong” और इस कहावत कों चरितार्थ करते हुएदिखी भारत सरकार के द्वारा देश के प्रमुख अखबारों कों दिए गए विज्ञापन |देखने कों कुछ ऐसा मिला जब सरकारके एक प्रमुख अख़बार को दिए सरकारी विज्ञापन में पाकिस्तान के पूर्व एयर चीफ़ मार्शल की तस्वीर होने परविवाद पैदा हो गया | ये विज्ञापन भ्रूण ह्त्या के विरोध में आम जनता से एक अपील है | भ्रूण-हत्या के ख़िलाफ़अपील करने वाला ये विज्ञापन महिला और बाल विकास मंत्रालय ने तैयार किया है|

विज्ञापन में कई जानी-मानी हस्तियों की तस्वीरों के साथ पाकिस्तान के पूर्व एयर चीफ मार्शल तनवीर महमूदअहमद की तस्वीर भी छपी है|इस विज्ञापन में जानी-मानी हस्तियों का उल्लेख देते हुए इन्हें जन्म देने वाली माँकी अहमियत के बारे में बताया गया है और गर्भ में बच्चियों को न मारने की अपील की गई है| इस अपील नेविवाद का दामन पकर लिया है | इसे लापरवाही कहें या भूल , ये बात तो बिलकुल स्पष्ट हो गयी है की सरकार केद्वारा दिए गए विज्ञापनों में अगर ऐसी चूक हो सकती है , तो मीडिया के विश्वसनीयता पर सवाल तो खडा होगा ही |

लेकिन इस बार मीडिया दोषी नहीं है | मौजूदा व्यवस्था के तहत विज्ञापन में छापी जाने वाली सारी सामग्रीडीएवीपी को संबंधित मंत्रालय देता है. डीएवीपी का काम प्रूफ़ के तौर पर विज्ञापन को देखना और फिर छपवाने काहोता है|तो मीडिया इसमें कोई काट छांट कर ही नहीं सकती है |इसे गैर जिम्मेदारी कहें या फिर सरकार कीअनदेखी जिसके कारण ऐसी गलतियां होती है |सरकार ने इस गलती के जांच के लिए कमिटी का गठन भी करदिया है और देश की आम जनता से माफी भी माँगी है |लेकिन सवाल यह खडा होता है की जांच और कमिटियाँ तोमुद्दे के ठन्डे बस्ते में जाने के बाद ज्यादे कुछ कर नहीं पाती है |

विपक्ष कों सरकार के खिलाफ चिल्लाने के लिए मुद्दे चाहिए जो उसे समय समय पर मिलता भी रहता है |भारतीयजनता पार्टी (भाजपा) ने इस पर कड़ी प्रतिक्रिया जताते हुए महिला और बाल विकास मंत्री कृष्णा तीरथ कोमंत्रिमंडल से हटाने की माँग की है|आम जनता के मन में प्रश्न यह है की आखिर ऐसी चूक के लिए जिम्मेदार हैकौन ? सरकार ,उसका मंत्रालय या विज्ञापन एजेंसी |आखिर सवाल यह है की पाकिस्तान के पूर्व एयर चीफ़ मार्शलकी तस्वीर को एक मंत्रालय के विज्ञापन में लगाए जाने का क्या उद्देशय है| क्या भारत के वायु सेना अध्यक्ष, थलसेना अध्यक्ष या नौसेना प्रमुख की तस्वीर यहाँ नहीं लगाई जा सकती थी|सरकार इस मामले में अपनी दलील पेशकर रही है ,लेकिन यह तो आम जन की भावना कों आहत करने वाली बात है|

विज्ञापन में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, संयुक्त प्रगतिशील गठबंधऩ (यूपीए) की चेयरमैन सोनिया गांधी, भारत कोमें वर्ल्ड कप दिलाने वाली क्रिकेट टीम के कप्तान कपिल देव, बल्लेबाज़ और मौजूदा भारतीय क्रिकेट टीम केउप कप्तान वीरेंदर सहवाग, पद्म विभूषण से सम्मानित सरोद वादक उस्ताद अमजद अली ख़ान और उनके बेटोंअमान और अयान अली बंगश के साथ पूर्व पाकिस्तानी सैन्य अधिकारी की तस्वीर छपी है।
विज्ञापन भले ही अपने मकसद में कामयाब बताया जा रहा हो लेकिन इस गलती की जिम्मेदारी या अपराधबोधजैसी कोई भी बात सरकार की तरफ से नहीं दिखाई दे रही है |आम जनता के मन में एक सवाल घुमर रहा है वो यहकी आखिर ये गलती है किसकी सरकार ,मंत्रालय या विज्ञापन एजेंसी की ?

Thursday, January 21, 2010

पाकिस्तानी क्यों नहीं ?


" बाप बड़ा भैया सबसे बड़ा रुपैया" ये कहावत चरितार्थ होते दिखी जब आईपीएल इस - के लिए खिलाड़ियों की नीलामी बहस का मुद्दा बनी |खेल पहले व्यवसाय और अब राजनीती के नए रंग में रंग चुकी है | व्यवसाय बने इस खेल में खिलाडियों की नीलामी हुई |पाकिस्तान के एक भी खिलाड़ी फ्रेंचाइज़ी मालिक के द्वारा नहीं चुने गए | सवाल और आरोपों के दौर ने तूल पकड़ ली है| |वाजिब ही है आखिर पिछले बीसी ओवर के चैंपियंस में किसी में ऐसी कूबत नहीं की उन्हें चुना जा सके |या फिर इस खेल ने भी राजनीती का रंग ले लिया है | भारत में इस खेल के आका ललित मोदी ने मीडिया को बताया कि उन खिलाड़ियों ने डेडलाइन मिस किया |पाकिस्तान के 11 खिलाड़ियों में से एक भी इंडियन प्रीमियर लीग की नीलामी में नहीं बिक सका।

पाकिस्तानी क्रिकेटर अफ़रीदी कहते हैं कि यह क्रिकेट टीम का नहीं, बल्कि पाकिस्तान का अपमान है, उन्होंने ऐसा बताया कि इसका अंदेशा उन्हें पहले से था कुछ और दबावों, कारणों, राजनीति की तरफ़। दूसरी ओरइस बात पर भी उन्होने जोर दिया कि ये पूरी तरह से टीमों के मालिकों की पसंद का मसला है कि वो किसे लेंगे और किसे नहीं.
अब बहस यह चल निकली है कि क्या पाकिस्तान का एक भी खिलाड़ी आईपीएल में खेलने के काबिल नहीं। कहीं खेल के लिए खिलाड़ी की क्षमताओं के बजाय उसकी पहचान, राष्ट्रीयता और संप्रदाय भी मानक तो नहीं बन रहे| या सुरक्षा और वीज़ा जैसी चिंताओं ने नीलामी को प्रभावित किया|क्या इस तरह पाकिस्तान में क्रिकेट को और खेल भावना को नुकसान नहीं होगा. कितने गंभीर लगते हैं टीमों के मालिक खेल भावना और खिलाड़ियों के प्रति क्या इन मालिकों के निर्णय खेल भावना को आह़त नहीं करती है |

गीत संगीत औए संस्कृति के माध्यम से हम एक दुसरे को करीब लाने की जुगार में लगे रहते है तो ये खेल क्यों नहीं |क्या ये सवाल हमारे मन में प्रस्फुटित नहीं होने चाहिए | पाकिस्तान को शायद उन कारणों पर आत्मविश्लेषण करना चाहिए जिनकी वजह से भारत और पाकिस्तीन के रिश्तों में तनाव पैदा किया है|आज इन दो देशों के बीच शांति, स्थिरता और समृद्धि को बुरी तरह से प्रभावित किया है|आईपीएल जैसा व्यवसायिक आयोजन भारत सरकार के दायरे में नहीं आता है क्या ये सच वास्तविकता से परे है या सरकार ऐसा बयान देकर अपना पल्ला झाड रहे हैं

क्या खेल भावना पर देशप्रेम हावी हो रहा है या फिर इसे राजनीति का अमली जामा पहनाया जा रहा है ?

Monday, January 18, 2010

कवि की कल्पना

घूम गया जो चक्र, उसी की ओर देखता जाता हूं।

प्रशंसा के अल्फ़ाजों में ,खुद की लेखनी को पाता हूं॥


पथिक बना गन्तव्य को देख, लालच को अब अपनाता हूं।

घूम गया जो चक्र, उसी की ओर देखता जाता हूं||


शब्दों में अब वह जोश नहीं आवेश नहीं मैं पाता हूं।

घूम गया जो चक्र, उसी की ओर देखता जाता हूं||


वाह-वाह और बहुत खूब से मन को हर्षित कर पाता हूं|

घूम गया जो चक्र, उसी की ओर देखता जाता हूं||


कविता जीवन का श्रोत कहां, इसे हसीं का पात्र बनाता हूं|

घूम गया जो चक्र, उसी की ओर देखता जाता हूं||

Thursday, January 14, 2010

फाइनल फोबिया





"जीते तो ताली हारे तो गाली" भारतीय क्रिकेट टीम के लिए ये सबसे सटीक और सहज पुरस्कार है |इस देश में धर्म माने जाने वाले इस खेल और खेलप्रेमियों का भावनात्मक लगाव कुछ यही बयाँ करता है |वही हुआ जिसका डर था|धोनी की युवा और सशक्त मानी जाने वाली टीम एक बार फिर फाइनल के डर कों नहीं झेल पायी|खेल के आगाज़ ने ही अंजाम का रूख तय कर दिया था |धन्यवाद के पात्र तो रैना और जडेजा है जिन्होंने मुश्किल क्षणों में दवाब में डूबती नैया कों शतकीय साझेदारी से साहिल तक पहुंचाने की कोशिश की |

टेस्ट में नम्बर वन बनने वाली टीम के पांच कागजी शेर ताश के पत्तो की तरह ढेर होते दिखे |आशावादी सोच ने दर्शको के आँखों में आंसू तक ला दिए |"जीत जीत होती है और इसके लिए एक ख़ास जज्बे की जरूरत होती है" ,मैच के ठीक बाद क्रिकेट विशलेषक का गुस्सा (कपिलदेव ,अतुल वासन ) सातवे आसमान पर था |आखिर हो भी क्यों ना ये शायद इस क्रिकेट की इस कैप की अहमियत कों ज्यादे सही तरीके से अंजाम तक लाने की जुगार में लगे रहते थे|
अंगरेजी में एक कहावत है ( Hope is the cause of sorrow )शायद भारतीय दर्शक कों क्रिकेट खिलाडियों ने नए साल का ये बेहतरीन तोहफा दिया हो ! कहते है की जीत के लिए एक ख़ास किस्म की जज्बे की जरूरत होती है ,मिस फील्डिंग ,कैच टपकाना,हाथ उठाकर दुसरे फिल्डर की तरफ इशारा करना की भैया गेंद जा रही है पकड़ लेना |ये सब तो था ही हमारे खिलाडियों में आखिर ये फाइनल जो खेल रहे थे |इतिहास गवाह है कप्तान कोई भी क्यों ना हो हम फाइनल तो हार ही जाते है |विदेशों में सबकी नेत्रित्व क्षमता पर एक सवालिया निशान लग ही जाता है |

श्री लंकाई टीम इस जीत की हकदार सही मायने में थी ,क्योंकि वो भारतीय खिलाड़ियों की अपेक्षा सभी क्षेत्रों में उन पर भारी पर रहे थे |हारने के बाद भी पुरस्कार वितरण समारोह के दौरान युवराज की बतीसी कैमरे के सामने बखूबी दिख रही थी | अरे भाई हो सकता है आपको ये वाक्य थोड़ा दुःख दे सकता है |क्या करू भाई मैं भी तो एक भारतीय दर्शक का ही दिल रखता हूँ | "कारज धीरे होत है काहे होत अधीर" धीरे धीरे ही सही जीत की आस कों हम शब्दों की मजबूती तो जरूर दे सकते है | आशा करते है की हमारी टीम फाइनल फोबिया से शायद उबर पाए |क्रिकेट की भाषा में टफ लक दिस टाइम ,बेटर लक नेक्स्ट टाइम|

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