Saturday, March 27, 2010

इश्क बदल गया

वो शाम पुरानी लगती है वो जाम पुरानी लगती है |
अफसानों के आँगन में अब हर काम पुरानी लगती है ||

जिन्दा हूं और रोज जीने की कोशिश करता हूं।

बद्लते जमाने और इश्क के मर्म में मरने से भी अब डरता हूँ ||


इश्क की आहट सुन अब क्यों जिन्दा ही मर जाता है |

अब जाकर जाना है कि दिल की दुनिया में प्यार भी एक समझौता है ||

अरमानों के इस गुलशन में यादें ही आँखें भिंगोता है |

जब सारा आलम सोता है तो ये पगला क्यों रोता है ||

Friday, March 19, 2010

ALL THE GLITTERS IS GOLD


IPL SEASON -3 big name big fame and everything as a spectator wants to find out in and out the field . cheer leaders is going to keep u crazy in the field and the dan danaa dan four and sixes by batsman will really cherish the moment of your life which is hectic and busy . wanna a seat beside Shahrukh , Juhi, Shilpa or Nita lose your pocket and do the dinner and gossip . The dashing wordological commentary team of Harsha, siddhu Gaurav and koacher, will flourish your articulation in Indian accent but last twos have no cricketing sense but pleading the comments and making some wow moments . By seeing the bikni of cheerleaders you will really feel yourself somehow in the heaven .

Now you are developing the thinking that a bad guy is trying to sketch the bad impression of this glittering world of this India . No way........ sorry to hurt ur feelings. but the truth is beyond our imagination . woman reservation bill has passed in the Rajya sabha ,sonia is haapy it is candid .she is being praised and it is said that this would be remembered as the history of India . but the woman world of India is not going to change any how in any circumstances . who is taking care of that woman who is dying of hunger and malnutrition. All these charismatic thing is only the example of all the glitters is gold .

Dada is diving to stop the ball and to save his prestige as a successful captain .on the other hand yusuf hits a cracking 37 ball century who becomes a failure after being selected in one day cricket . I will not make you fool they are taking hugeeeeeeeeeeeeeeee amount of money that's why these things are happening .The worth of this IPL investment is in crores which is of no use neither it is going to search out the new talents nor going to do the charity .what is of those (farmers) people who are committing suicide day by day due to being in debt .

"Everything is changing with the changing of the time" but the changing is not for those who are hungry and poor, who are in debt and in huts and living the life on less than 20 rupees a day's wage .They are not knowing the roundabout's of IPL or the policy of polishing the vote bank policy of our aam aadmi's government .these glittering things are of no means for them who slept hungry by feeding their child a piece of bread because of their poverty.

Was i sleeping or unconscious ? perhaps it was my dream of that English class in which my mentor always used to start teaching by writing a proverb for a day "All the glitters is not gold " sorry sir ......... these days "All the glitters is gold"

Friday, March 12, 2010

महिला आरक्षण ?



महिला आरक्षण विधेयक का पास होना कोई प्रलय ला रहा है और ना ही इससे महिलाओं की स्थिति बहुत सुदृढ़ होती दिख रही है |लेकिन मीडिया और कुछ राजनीतिक पार्टियां इस पर ऐसा बवाल काट रही है मानो लोकतंत्र का काया पलट हो रहा हो|पूरा देश लोकतंत्र के नए रंग में होली के पर्व की विदाई के जश्न में डूबा दिख रहा है |इस विधेयक में महिलाओं के लिए सिर्फ संसद में आरक्षण की बात हो रही है |इस देश में कितनी ऐसी महिलाएं है जो इस विधेयक के पारित या लागू होने का फायदा उठा पाएंगी , ये सवाल अभी भविष्य के गर्भ में है। अनुमानों के आयने मे अगर झांकने की कोशिश की जाये तो बमुश्किलात एक या दो प्रतिशत ? ये महिला सशक्तिकरण के तरफ बढ़ाया गया एक कदम बतया जा रहा है लेकिन इससे शायद ही महिला सशक्त होती दिख रही है |


जिस देश में (महिलाओं )भ्रूण ह्त्या , दहेज़ उत्प्रीरण, प्रसव के दौरान हो रही मौत में बांग्लादेश से भी पीछे होना आज भी विद्यमान है | वहाँ संसद में महिलाओं कों सीटें आवंटित करवा देना अगर इस दिशा में एक नया कदम है तो इस सच्चाई को हर एक लोगों को मान लेना चाहिए |इस देश को पुरूष प्रधान समाज कहा जाता रहा है लेकिन " नारी यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता " का कांसेप्ट भी तो यहाँ के शास्त्रों में पढने को मिलता है | फिर इन्हें कब दबाया गया और कुचला गया ।महिला विधेयक का पारित होना राजनीति को एक नया अमली जामा पहनाना है और कुछ नही||

लोकतंत्र के इस मायवी खेल में कुछ इसे समझ पा रहे हैं तो कुछ लोहिया और जय प्रकाश के आदर्शों पर चलने वाले विरोधी पंक्ति में कतारबद्ध दिख रहे हैं, जिनके विरोध के स्वर प्रखर हैं | राजीव गांधी का सपना पूरा करना जहां एक तरफ सोनिया जी को खुशी की अनुभूति करा रहा है वहीं राहुल की चुपी से आम जनता के मन में सवाल खड़े कर रही है | संसद से सड़क तक कहीं खुशी तो कहीं गम की पहेलियों के बीच कई राजनीतिक चेहरे पर खुशी और गम को स्पष्ट देखा जा सकता है |राजनितिक रूप से ही नहीं अगर सही मायने में देश की महिलाओं को सशक्त किया जाए तो किसे आपत्ति होगी और क्यों |आखिर इस देश की आम जनता भी अब अपने साक्षर होने का सबूत लोकतंत्र के चुनावों में हो रहे फेरबदल से तो देती ही रहती है |


ऐसा लगता है मानो सशक्तिकरण शब्द को ये तथाकथित राजनीतिज्ञ सशक्त करने में जुट गए है | देश की राजधानी में जब एक महिला पत्रकार (सौम्या विश्नाथन )की ह्त्या होती है तो मुख्यमंत्री का बयान आता है कि देर रात महिलाओं के सड़क पर घूमने की आज़ादी नहीं है | उसी देश और देश की राजनीतिक पार्टियां राज्य सभा में इस बिल के पारित होने पर खुशियाँ मनाती है | ये है महिला सशक्तिकरण | हँसी आती है और दुःख भी होता है , खुद को निशब्द पाता हूँ ऐसी ओछी राजनीती को समझने औए उसे पचा पाने में | महिला आरक्षण विधेयक राजनीति की ओछी परिभाषा को मान्यता देता है | ये स्त्रियों को दिया जाने वाला आमंत्रण है कि आप भी इस तथाकथित पुरूष प्रधान समाज में आगे आयें और लोकतंत्र की काया पलट करने में अपनी भूमिका में सहजता महसूस करें |


--
Gautam sachdev

Wednesday, March 10, 2010

एक दिया बुझा हुआ !



ख़ून से जब जला दिया एक दिया बुझा हुआ|

फिर मुझे दे दिया गया एक दिया बुझा हुआ||


गम लिखूं या कम लिखूं इस खेल में फसा हुआ |
अतीत की वो याद है जो मिल गया खुदा हुआ ||


जिन्दगी के खेल में अकेलेपन का इन्तहा हुआ |
सोचने से पहले उनसे कोई लब्ज था बयाँ हुआ ||

सोच कर चला था मैं ,काफिला ही अब जुदा हुआ |
अपने थे जो बन गए , रकीब सा खफा हुआ ||

वो शाम की चिराग थी, जो बुझ गया जला हुआ |
रोशनी के अँधेरे में ,कुछ खो गया मिला हुआ ||







Tuesday, March 9, 2010

अल्फाजों का आशियाना



चाँद की चाँदनी में भी मेरा साथ बेगाना लगता है |
पहले मेरी आँखें मरहम और अब छुअन भी अनजाना लगता है ||

साहिल से दूर समंदर सा पीर अपना आशियाना लगता है |
प्यार की राहों में एक कंकड़ भी परवाना लगता है |

जिस हँसी कों बेताबी से देखा करती थी वो |
अब वही खुशी क्यों गम का फ़साना लगता है ||

शिकवा है मुझसे खुशी ना दे पायी पूरी |
पता है शायद उन्हें खुश होने में मुझे एक ज़माना लगता है ||

अल्फाजों और जुमलों में क्या बयाँ करूं|
अब इन बिखरे शब्दों कों पिरोना भी काम पुराना लगता है ||

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