Tuesday, January 26, 2010
गणतंत्र पर शाब्दिक हमला
देश में कल गणतंत्र की धूम दिखी इसी बीच एक और बात जो प्रचुर मात्रा में देखने कों मिली वो थी कागजी मीडियाके महारथी का देश के नाम शाब्दिक पटुता का एक नया अंदाज़ | ये कोई नयी बात नहीं थी |शब्दों के कुशलकारीगर गणतंत्र पर देश की खामियों कों गिनाने में लगे हुए थे |सुबह से लेकर शाम तक मैं ने करीब दस आलेखऔर कुछेक ब्लॉग पढ़े सबके सब शाब्दिक चिंता में डूबे दिखे वजह देश की आजादी के लम्बे अरसे बाद भी देश केस्थिति का चरित्र चित्रण |मेरी समझ में एक बात बिलकुल नहीं आयी ये आखिर कलम के जादूगर कहना औरकरना क्या चाहते है |
क्या देश की खामियों कों गिनाकर कोई क्रांती लायी जा सकती है जिसकी नीव बदलाव के साथ रखीजायेगी |क्यागणतंत्र पर राजपथ की परेड कों फिजूलखर्ची कहने से गरीबों का पेट भर जाएगा |कलम के बादशाहों कों शायद येपता नहीं की उनके शब्द में अब वो ताकत नहीं है, जो गांधी, दिनकर और भगत की लेखनी में हुआ करते थेआखिर ये अपनी शाब्दिक पटुता कों काली स्याही के रंग में रंग कर साबित क्या करना चाहते है |चन्द पैसों केलिए कलम चलाने वाले ये महानुभाव लेखनी से ही देश की गरीबी ,भूखमरी और नक्सलवाद जैसी समस्याओं कासमूल नाश करने का बीड़ा उठा रखा है |
ये सवाल उन प्रबुद्ध जनों से नहीं है जो देश की उपलब्धियों कों धता बताते है और शब्दों में ही सुधार की गुंजाइशदेखते है |काश ऐसा हो पाता ! सही मायने में ये लोकतंत्र से ही एक सवाल है |जहाँ गणतंत्र और स्वतंत्र होने के भीदिवस कों मनाया जाता है |शाब्दिक प्रबुधता से देश का कल्याण नहीं हो सकता है |इस देश में लिखने वालो कीकोई कमी नहीं है जो अपनी शाब्दिक पटुता से देश हित की कागजी बातें करते करते खुद कों ख़तम कर लेते हैलेकिन सुधार के नाम पर बासठ सालो में तो कुछ भी देखने कों नहीं मिलता |ये सवाल सिर्फ सिर्फ प्रबुद्ध जनों केमन मष्तिष्क में ही नहीं उभरा है , मैं और मेरे जैसे पत्रकारिता के कुछ मेरे दोस्त भी इस दौर में शामिल है |शब्दका अस्तित्व ही क्या है .....क्या आग कहने से आग जलने लगती है , क्या पानी कहने से प्यास बुझ जाती है |नहींबिलकुल नहीं |
सब अपना भड़ास सिर्फ शब्दों में निकालकर शांत हो जायेंगे फिर अगले साल गणतंत्र आयेगा और खुद कों आमआदमी के लेबल से चिपकाकर ये अगली बार फिर लिखेंगे जिनके इन्हें चन्द पैसे मिल जायेंगे | शब्द देश काकल्याण करते तो ये कलम के जादूगर देश और देश की आम जनता के लिए सरकार का ध्यान आकृष्ट करवा पातेदेश के गणतंत्र और स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या और दिवस पर ऐसे ही आलेख लिखे जायंगे ,हम जैसे मूकपाठक उसे पढ़कर मौन रहने का संकल्प लेंगे और अगली बार फिर देशहित और समाज के समग्र विकास कीपरिकल्पनाओं में खुद कों शाब्दिक शेर साबित करेंगे | |
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4 comments:
Gautam Jee,
jiski jo bhumika hai wo wahi nibha sakta hai, lekhak apnee vyathaa likh kar, shaayar shaayaree sunaakar, artist painting banaakar hee kartaa hai, theek waise hee jaise aapne apanaa gussaa likh kar vyakt kiya hai.
maantaa hoon ki kaagaz syaah karne se badlaav nahee honge to iska kya matlab ki sabko likhnaa chhod denaa chaahiye??
jawaab dijiyegaa...
gautam ji kuch log sirf kagaj ka saar ho ta hai. 6o sal main desh main accha bhi kaphi kuch hua hai.
garibi agar samapt nahi hui to kaya hua kami toyai hi hai
kahain ta hai sirf likhna sa kuch nahi hota ussa karna bhi padta hai
गौतम जी......
बहुत ही सुंदर लेख.
अब मुद्दों पर आते हैं. आपने कहा कि लिखने से क्या होगा. सही बात है कि हमारे ब्लोग लिखने से कुछ नहीं होगा. कुछ नहीं बदलेगा. लेकिन आप ये नहीं कह सकते की लिखने से क्या होगा. साहब, मैं मानता हूं कि आज पत्रकारिता और आज के पत्रकार साफ-सुथरे नहीं हैं लेकिन अगर ये नहीं होते तो समस्या कुछ ज्यादा ही बड़ी होती.
हो सकता है कि आपको इस दिवस पर होने वाले कार्यक्रम से देशभक्ति की सुगंध आती हो या आप राजपथ पर बड़े-बड़े टैंक और सैनिकों की कदम-ताल को देखकर गौरव का अनुभव करते हों.
लेकिन मुझे ऐसा कुछ भी नहीं लगता. और मैं इसे ठीक वैसे ही पैसे की बरबादी मानता हूं जैसा शादी में दिखवे के लिए होने वाला खर्च.
जहां तक बात है कि कुछ करना होगा तो यहां आप सही हैं. मेरा भी मानना है कि केवल भाषणबाजी से कुछ नहीं हो सकता. मौका लगा तो जरुर कुछ ठोस करुंगा.
तिवरी साहब से कहना चाहूंगा कि आप शायद किसी सपने की दुनियां में जी रहे हैं. हकिकत से वास्ता बनाइए.
gautamji....abhi to sirf shabdik hamla ho raha hai....sarkar tab jagegi jab janta hamla karegi....
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