Monday, November 30, 2009

मीडिया का देशप्रेम ?

यह २६ नवम्बर की शाम की बात है जब मीडिया का देशप्रेम छलकता हुआ दिख पड़ा |वह एक उद्दास करने वाली शाम थी |जब देश के तमाम टी वी चैनल अपने - अपने तरीके से देशप्रेम की थाली में जज्बातों की मिठाइयाँ पड़ोस रहे थे |सब मुंबई हमले की बरषी जो मना रहे थे |तर्कवीर कुछ निंदा कुछ आलोचना ,समालोचना और प्रशंसा के माध्यम से देशभक्ति में सरावोर दिख रहे थे |तर्क और टी. आर .पी के इस घमासान में यह सच दम तोड़ चुका था की हम आज भी एक राष्ट्र के रूप में आज भी ख़ुद को उतना ही असुरक्षित महसूस कर रहे है |
हादसे की बरषी मनाने में हम लोगों ने जो कुछ किया वो शायद कम ही था |तभी तो हमे यह भी देखने को मिला की जहाँ माँ -बाप अपने बेटे को आतंकवादी हमलो में शहीद होने पर गौरवान्वित होते है वही संदीप उन्नीकृष्णन के माता पिता ने कहा की नही ,मुझे तो गर्व है की वह अपनी कर्तव्य परायणता के कारण शहीद हुआ लेकिन किसके लिए ? और क्यों ? मीडिया का देशप्रेम शायद पूंजीपतियों को ध्यान में रखकर ही मनाया जा रह था,पता नही क्यो मुझे तो लग रहा था की जो आम आदमी मरे थे क्या वो इस देश के नही थे |उनकी सुध लेने वाला तो कोई नही दिखा |१३ दिसम्बर भी तो बहुत ही नजदीक है देखने वाली बात होगी की की ये उन शहीदों की देशभक्ति का देशप्रेम कैसे चित्रित करते है |जिन्होंने दिल्ली के दिल पर हुए हमले में अपनी जान गवाई थी |
मै तो एक बात स्पष्ट तौर पे कहना चाहूँगा की मीडिया अगर अपना देश प्रेम ही दिखाना ही चाहती है ,तो बेमकसद जी रही उन जिंदगियों के लिए कुछ गुहार सरकार से लगाये जिन्होंने अपने अकेले संतान को देश के लिए नयोछ्वार कर दिया और आज भी सांत्वना और संवेदनाओ की रकम की आस में है |देशभक्तों को सिर्फ़ याद कर लने से हम शायद देशभक्त नही हो सकते है |जरूरत है एक ऐसे क्रान्ति की जिसमे देश के जागरूक नागरिक भी अपनी भागीदारी दिखायें और सिर्फ़ सरकार को दोषी ठहराने के वजाए कुछ नई सोच और परिवर्तन के बारे में सोचे |
वो देश कोई भी क्यों हो नौजवानों को कन्धा देकर महान बनने का सपना नही देख सकती है |बल्कि जरूरत है की उन कंधो को इतना मजबूत किया जाए की उन पर चढ़कर आगे बढ़ने का प्रयत्न किया जाए |शब्द ,तर्क और वाक्यों के देशप्रेम से सिर्फ़ उनकी बलि चढ़ाई जा सकती है| वो बीते कल के भगत सिंह हो या फिर आज के संदीप उन्नीकृष्णन हम इनकी शहादत को सही मायने में भुला तो नही सकते लेकिन इनकी शहादत से जरूरत है कुछ सिखने की जिसपर अम्ल किया जा सके और इंसानियत की खातिर देश के ऐसे शहीद को राजनितिक तिरंगों में लपेटकर उनका राजकीय सम्मान के साथ अन्तिम संस्कार नही किया जाए|

5 comments:

Unknown said...

are sir sayad aako yeah pata nahi hai ki media ke liye trp hi sab khael hai ????????????khair jo bhi dekhyia aur aage media kya kya gul khilati hai ya phir ek gulistaa hi ban na jaye?????????

ULKASHM said...

shabdon ka chayan kabil-e-tarif hai. tumne mere dil ki baat kahi hai aur bilkul sahi bhi kahi hai.es zazba aur zazbaat ko hamesha zinda rakhna, yaad rakhna.Aisi creative rachna ke liye kotishah dhanyabaad.

Unknown said...

TUMHARI ABHIVAKTI PADHI, ACCHI LAGI. tumne mere dil ki baat kah dali.tumhare ye zazba aur zazbaat youn hi barkarar rahe, yahi ummid karunga. sabdon ka chayan kabil-e-gaur hai. tumhar likhe antim wakya "इंसानियत की खातिर देश के ऐसे शहीद को राजनितिक तिरंगों में लपेटकर उनका राजकीय सम्मान के साथ अन्तिम संस्कार नही किया जाए|" muk abhivaykti me bhi sari baaten kah dalti hain. pyar sahit tumhara--- Rishi

Roshani said...

bilkul sahi kaha aapne..

Vikas Kumar said...

gautam ji media ka desh prem to trp p hi tika hai......

bahut achha likhaa hai apne.....

mai chaunga ki aap isei vishy par PUNY PRASHUN VAJPEY KO PADHEN.
LINK HAI http://prasunbajpai.itzmyblog.com/2009/12/2611.html

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