मेरे दिल के आएने में हमेशा उनकी तस्वीर होती थी।
खुदा को ये मन्जूर ना हुआ तो इस दिल का क्या करें॥
उनकी याद में अब रोते है इसके सिवा हम क्या करें।
वो कह्ती हैं मुझे बेवफ़ा अब अपनी वफ़ा का क्या करें॥
मैं बेवफ़ा ही सही लेकिन उनकी यादों में तो जीता हूं।
तकलीफ़ तो तब होती है,जब उनके नाम का जाम पीता हूं॥
सोचा था उन्हें भुला दूंगा ,लेकिन हर पल उन्हे याद करता हूं।
कोइ बताये उन्हे कि आज भी मैं उनपे एतवार करता हूं॥
पथ्थर नहीं इन्सान हैं हम कैसे सहें टूटॆ दिल का सितम ।
अब अल्फ़ाज़ भी लडखडाते हैं जब लिखता हूं मैं दर्द ए गम ॥
खुदा को ये मन्जूर ना हुआ तो इस दिल का क्या करें॥
उनकी याद में अब रोते है इसके सिवा हम क्या करें।
वो कह्ती हैं मुझे बेवफ़ा अब अपनी वफ़ा का क्या करें॥
मैं बेवफ़ा ही सही लेकिन उनकी यादों में तो जीता हूं।
तकलीफ़ तो तब होती है,जब उनके नाम का जाम पीता हूं॥
सोचा था उन्हें भुला दूंगा ,लेकिन हर पल उन्हे याद करता हूं।
कोइ बताये उन्हे कि आज भी मैं उनपे एतवार करता हूं॥
पथ्थर नहीं इन्सान हैं हम कैसे सहें टूटॆ दिल का सितम ।
अब अल्फ़ाज़ भी लडखडाते हैं जब लिखता हूं मैं दर्द ए गम ॥
1 comment:
dekhiye gautam ji!
main aapki bhavnaao ko samaajh sakta hoon aur uski kadr bhi karta hoon.
lekin hamein ek baat achhinahi lagi ki aapne first sentence mein past tense ka use kiya.
go on.
good luck!
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