Friday, March 12, 2010

महिला आरक्षण ?



महिला आरक्षण विधेयक का पास होना कोई प्रलय ला रहा है और ना ही इससे महिलाओं की स्थिति बहुत सुदृढ़ होती दिख रही है |लेकिन मीडिया और कुछ राजनीतिक पार्टियां इस पर ऐसा बवाल काट रही है मानो लोकतंत्र का काया पलट हो रहा हो|पूरा देश लोकतंत्र के नए रंग में होली के पर्व की विदाई के जश्न में डूबा दिख रहा है |इस विधेयक में महिलाओं के लिए सिर्फ संसद में आरक्षण की बात हो रही है |इस देश में कितनी ऐसी महिलाएं है जो इस विधेयक के पारित या लागू होने का फायदा उठा पाएंगी , ये सवाल अभी भविष्य के गर्भ में है। अनुमानों के आयने मे अगर झांकने की कोशिश की जाये तो बमुश्किलात एक या दो प्रतिशत ? ये महिला सशक्तिकरण के तरफ बढ़ाया गया एक कदम बतया जा रहा है लेकिन इससे शायद ही महिला सशक्त होती दिख रही है |


जिस देश में (महिलाओं )भ्रूण ह्त्या , दहेज़ उत्प्रीरण, प्रसव के दौरान हो रही मौत में बांग्लादेश से भी पीछे होना आज भी विद्यमान है | वहाँ संसद में महिलाओं कों सीटें आवंटित करवा देना अगर इस दिशा में एक नया कदम है तो इस सच्चाई को हर एक लोगों को मान लेना चाहिए |इस देश को पुरूष प्रधान समाज कहा जाता रहा है लेकिन " नारी यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता " का कांसेप्ट भी तो यहाँ के शास्त्रों में पढने को मिलता है | फिर इन्हें कब दबाया गया और कुचला गया ।महिला विधेयक का पारित होना राजनीति को एक नया अमली जामा पहनाना है और कुछ नही||

लोकतंत्र के इस मायवी खेल में कुछ इसे समझ पा रहे हैं तो कुछ लोहिया और जय प्रकाश के आदर्शों पर चलने वाले विरोधी पंक्ति में कतारबद्ध दिख रहे हैं, जिनके विरोध के स्वर प्रखर हैं | राजीव गांधी का सपना पूरा करना जहां एक तरफ सोनिया जी को खुशी की अनुभूति करा रहा है वहीं राहुल की चुपी से आम जनता के मन में सवाल खड़े कर रही है | संसद से सड़क तक कहीं खुशी तो कहीं गम की पहेलियों के बीच कई राजनीतिक चेहरे पर खुशी और गम को स्पष्ट देखा जा सकता है |राजनितिक रूप से ही नहीं अगर सही मायने में देश की महिलाओं को सशक्त किया जाए तो किसे आपत्ति होगी और क्यों |आखिर इस देश की आम जनता भी अब अपने साक्षर होने का सबूत लोकतंत्र के चुनावों में हो रहे फेरबदल से तो देती ही रहती है |


ऐसा लगता है मानो सशक्तिकरण शब्द को ये तथाकथित राजनीतिज्ञ सशक्त करने में जुट गए है | देश की राजधानी में जब एक महिला पत्रकार (सौम्या विश्नाथन )की ह्त्या होती है तो मुख्यमंत्री का बयान आता है कि देर रात महिलाओं के सड़क पर घूमने की आज़ादी नहीं है | उसी देश और देश की राजनीतिक पार्टियां राज्य सभा में इस बिल के पारित होने पर खुशियाँ मनाती है | ये है महिला सशक्तिकरण | हँसी आती है और दुःख भी होता है , खुद को निशब्द पाता हूँ ऐसी ओछी राजनीती को समझने औए उसे पचा पाने में | महिला आरक्षण विधेयक राजनीति की ओछी परिभाषा को मान्यता देता है | ये स्त्रियों को दिया जाने वाला आमंत्रण है कि आप भी इस तथाकथित पुरूष प्रधान समाज में आगे आयें और लोकतंत्र की काया पलट करने में अपनी भूमिका में सहजता महसूस करें |


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Gautam sachdev

Wednesday, March 10, 2010

एक दिया बुझा हुआ !



ख़ून से जब जला दिया एक दिया बुझा हुआ|

फिर मुझे दे दिया गया एक दिया बुझा हुआ||


गम लिखूं या कम लिखूं इस खेल में फसा हुआ |
अतीत की वो याद है जो मिल गया खुदा हुआ ||


जिन्दगी के खेल में अकेलेपन का इन्तहा हुआ |
सोचने से पहले उनसे कोई लब्ज था बयाँ हुआ ||

सोच कर चला था मैं ,काफिला ही अब जुदा हुआ |
अपने थे जो बन गए , रकीब सा खफा हुआ ||

वो शाम की चिराग थी, जो बुझ गया जला हुआ |
रोशनी के अँधेरे में ,कुछ खो गया मिला हुआ ||







Tuesday, March 9, 2010

अल्फाजों का आशियाना



चाँद की चाँदनी में भी मेरा साथ बेगाना लगता है |
पहले मेरी आँखें मरहम और अब छुअन भी अनजाना लगता है ||

साहिल से दूर समंदर सा पीर अपना आशियाना लगता है |
प्यार की राहों में एक कंकड़ भी परवाना लगता है |

जिस हँसी कों बेताबी से देखा करती थी वो |
अब वही खुशी क्यों गम का फ़साना लगता है ||

शिकवा है मुझसे खुशी ना दे पायी पूरी |
पता है शायद उन्हें खुश होने में मुझे एक ज़माना लगता है ||

अल्फाजों और जुमलों में क्या बयाँ करूं|
अब इन बिखरे शब्दों कों पिरोना भी काम पुराना लगता है ||

Tuesday, February 2, 2010

खुद कों बताऊँ कैसे !


तुम्हारी आंखो के साहिल से दूर कहीं अपना आशियाना बनाऊ कैसे।

तिनकों के घरौंदे में अब रह्कर खुद को समझाऊ कैसे ॥

आरजू की तपिश में पिघलकर भी तेरा नाम ही अच्छा लगता है ।

विरह की आग मे जलकर खाक बन जाना अपना नसीब लगता है ॥

अपने वजूद को खोकर भी खुद को तेरी लौ में जलाउं कैसे।

खाली हाथ आयी इस शाम में तेरी यादों को भुलाउं कैसे ।।

वक्त के हसी सितम ने अब मेरा दामन थाम लिया है ।

इंतजार की एक एक घडी ने मेरे प्यार को नया आयाम दिया है॥

Thursday, January 28, 2010

सानिया की समझ !


भारत की टेनिस स्टार सानिया मिर्ज़ा की सोहराब मिर्ज़ा से सगाई टूट गई है|टेनिस की दुनिया की एक खूबसूरत बाला ने इसे खुद का फैसला बताया है |शायद सानिया समझ गयी ! टेनिस की सनसनी कही जाने वाली सानिया का यह, या तो परिपक्व समझ है या फिर खेल से उनका प्रेम यह तो अभी भविष्य के गर्भ में है लेकिन एक बात तो स्पष्ट है की इन खिलाड़ियों कों आदर्श मानने वाले भारतीय नवोदित युवा खिलाडियों के लिए एक आस फिर जग गयी है | क्या सानिया फिर से कोर्ट पर मेहनत करते हुए ज्यादे और जिन्दगी कों सहजता से लेते हुए कम देखी जायेंगी ?

कुछ दिनों पहले सानिया मिर्जा़ की ओर से बयान आया था कि वो शादी के बाद टेनिस से संन्यास ले लेंगी| सानिया के इस बयान ने उनके चहेतों का दिल तोड़ दिया था |लेकिन इसे किस्मत का खेल कहें या देश कों टेनिस की दुनिया में कुछ और सम्मान दिलाने का मौक़ा |एक टेनिस प्रेमी के रूप में देश के तमाम लोग उन्हें खेलते हुए देखना चाहेंगे|अंतरराष्ट्रीय रैंकिंग में 34 वें नंबर तक पहुँचने वाली सानिया का करियर चोटों से जरूर प्रभावित रहा है लेकिन वो शायद इसे बेहतर कर सकती है |

साल २०१० की शुरूआत सानिया के लिए ज्यादे अच्छी नहीं कही जा सकती है | उनके सगाई के बाद के बयान से सगाई टूटने तक हर एक टेनिस प्रेमी के मन में एक सवाल उभर रहा है की क्या वो फिर से उसी रंग में दिखेंगी जिसके लिए उन्हें इतनी सोहरत मिली थी |क्या उनका कैरियर ढलते सूरज की तरह तो नहीं जो पश्चिम दिशा की और चल चुका है ? अब हम सब कों इस बात का इंतज़ार है की क्या सानिया की समझ उनके लिए कुछ अच्छे पल लाएगा ?
वक्त की नजाकत कों दखते हुए तो बस हम यही कह सकते है की खुदा उनकी जिन्दगी में समिर्धी और खुशहाली दे |उनका निजी जीवन खुशियों से भर जाए , और वो देश कों टेनिस के रैकेट के माध्यम से चन्द और खुशियाँ दे पाएं आज जिसे वो पारस्परिक समझ कह रही है क्या ये उनकी जिन्दगी में एक खिलाड़ी के रूप में उन्हें फायदा देगा या नुकसान ये तो आने वाला समय ही बताएगा |

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