पुरस्कार की जगह तिरस्कार ,सम्मान की जगह अपमान ,वेतन की जगह सांत्वना के शब्द ,क्या इन से पेट भर सकता है |ये सारे शब्द हैं भारतीय हॉकी के संचालक के |खिलाडियों ने अपने वेतन की मांग की क्या कर दी, कि देशभावना और खेलभावना पर सवाल खड़े कर दिए गए |मीडिया
भी अपनी भूमिका से
पीछे नहीं हटी | बागी ,बगावत और ना जाने कितने उपमाओं से इन खिलाडियों को अलंकृत किया | उन्हें फरमान जारी कर दी गयी की जवाब दे ,या फिर नयी टीम का चयन होगा |नैतिकता की बात करने वालो कों शायद ये नहीं पता कि देशभावना सर आँखों पर है लेकिन पेट की भूख तो खिलाड़ियों कों भी मिटानी पड़ती है ना उनकी भी कुछ जिम्मेदारिया है |गावों में एक कहावत प्रचलित है "भूखे भजन ना होए गोपाला " तात्पर्य यह कि भूखे रह कर तो हम भगवान् की भी पूजा नहीं कर सकते |
ये कितने दुःख की बात है देश के राष्ट्रीय खेल और खिलाड़ी आज इस अपमान का हिस्सा बन रहे है |यही नहीं वो तो बस अपने पेट भरने के लिए अपने वेतन की मांग कर रहे है |उन्हें क्रिकेट जैसे आर्थिक खेल के खिलाडियों कों दी जा रही सुविधाओं और सम्मानों से कोई गुरेज नहीं, लेकिन उनका मेहनताना तो कम से कम समय पर मिल जाए ओलम्पिक जैसे खेलों में पदक दिलाने वाले खेलों की आज ये नौबत है कि एक साल पहले किये वादे भी पूरे नहीं किये गए | बात निलंबन तक पहुँच चुकी है ,क्या इनके द्वारा इनकी मांग गलत है ?भारत में फरवरी में जहां हॉकी का विश्व कप होने वाला है वहाँ इन खिलाडियों की तैयारी इनकी व्यथा से स्पष्ट मालूम पड़ती है |
खिलाडियों को दिया गया अल्टीमेटम हकीकत है, या एक बहाना ये तो जल्द ही सामने आ जाएगा |लेकिन राष्ट्रीय खेल की ऐसी स्थिति और खिलाडियों की बगावत ये स्पष्ट करती है कि वेतन और प्रोत्साहन राशि के रूप में उन्हें सिर्फ सांत्वना के शब्द सुनने कों मिलते है|देश खुद कों आर्थिक दृष्टिकोण से विश्व के मानस पटल पर उभरती हुई अर्थवयवस्था बताती है | क्या इनकी मजबूती चन्द खिलाड़ियों के पेट भरने का इंतजाम नहीं कर सकती है |
जहां एक तरफ शाहरुख खान ने इनकी मांग को जायज बताया वही दूसरी तरफ शिवराज सिंह चौहान ने इस टीम के स्पोंशेर्शिप लेने की बात कही |देश का राष्ट्रीय खेल राजनितिक रंगों में डूबता दिख रहा है |ये तो लाजमी है कि बयानबाज़ी और सान्त्वाना से इनके पेट नहीं भर सकते है | वक्त की नजाकत को देखते हुए एक बात तो साफ़ है कि गेंहू के साथ घुन भी पिस जाते है |