महिला आरक्षण विधेयक का पास होना न कोई प्रलय ला रहा है और ना ही इससे महिलाओं की स्थिति बहुत सुदृढ़ होती दिख रही है |लेकिन मीडिया और कुछ राजनीतिक पार्टियां इस पर ऐसा बवाल काट रही है मानो लोकतंत्र का काया पलट हो रहा हो|पूरा देश लोकतंत्र के नए रंग में होली के पर्व की विदाई के जश्न में डूबा दिख रहा है |इस विधेयक में महिलाओं के लिए सिर्फ संसद में आरक्षण की बात हो रही है |इस देश में कितनी ऐसी महिलाएं है जो इस विधेयक के पारित या लागू होने का फायदा उठा पाएंगी , ये सवाल अभी भविष्य के गर्भ में है। अनुमानों के आयने मे अगर झांकने की कोशिश की जाये तो बमुश्किलात एक या दो प्रतिशत ? ये महिला सशक्तिकरण के तरफ बढ़ाया गया एक कदम बतया जा रहा है लेकिन इससे शायद ही महिला सशक्त होती दिख रही है |
जिस देश में (महिलाओं )भ्रूण ह्त्या , दहेज़ उत्प्रीरण, प्रसव के दौरान हो रही मौत में बांग्लादेश से भी पीछे होना आज भी विद्यमान है | वहाँ संसद में महिलाओं कों सीटें आवंटित करवा देना अगर इस दिशा में एक नया कदम है तो इस सच्चाई को हर एक लोगों को मान लेना चाहिए |इस देश को पुरूष प्रधान समाज कहा जाता रहा है लेकिन " नारी यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता " का कांसेप्ट भी तो यहाँ के शास्त्रों में पढने को मिलता है | फिर इन्हें कब दबाया गया और कुचला गया ।महिला विधेयक का पारित होना राजनीति को एक नया अमली जामा पहनाना है और कुछ नही||
लोकतंत्र के इस मायवी खेल में कुछ इसे समझ पा रहे हैं तो कुछ लोहिया और जय प्रकाश के आदर्शों पर चलने वाले विरोधी पंक्ति में कतारबद्ध दिख रहे हैं, जिनके विरोध के स्वर प्रखर हैं | राजीव गांधी का सपना पूरा करना जहां एक तरफ सोनिया जी को खुशी की अनुभूति करा रहा है वहीं राहुल की चुपी से आम जनता के मन में सवाल खड़े कर रही है | संसद से सड़क तक कहीं खुशी तो कहीं गम की पहेलियों के बीच कई राजनीतिक चेहरे पर खुशी और गम को स्पष्ट देखा जा सकता है |राजनितिक रूप से ही नहीं अगर सही मायने में देश की महिलाओं को सशक्त किया जाए तो किसे आपत्ति होगी और क्यों |आखिर इस देश की आम जनता भी अब अपने साक्षर होने का सबूत लोकतंत्र के चुनावों में हो रहे फेरबदल से तो देती ही रहती है |
ऐसा लगता है मानो सशक्तिकरण शब्द को ये तथाकथित राजनीतिज्ञ सशक्त करने में जुट गए है | देश की राजधानी में जब एक महिला पत्रकार (सौम्या विश्नाथन )की ह्त्या होती है तो मुख्यमंत्री का बयान आता है कि देर रात महिलाओं के सड़क पर घूमने की आज़ादी नहीं है | उसी देश और देश की राजनीतिक पार्टियां राज्य सभा में इस बिल के पारित होने पर खुशियाँ मनाती है | ये है महिला सशक्तिकरण | हँसी आती है और दुःख भी होता है , खुद को निशब्द पाता हूँ ऐसी ओछी राजनीती को समझने औए उसे पचा पाने में | महिला आरक्षण विधेयक राजनीति की ओछी परिभाषा को मान्यता देता है | ये स्त्रियों को दिया जाने वाला आमंत्रण है कि आप भी इस तथाकथित पुरूष प्रधान समाज में आगे आयें और लोकतंत्र की काया पलट करने में अपनी भूमिका में सहजता महसूस करें |
--
Gautam sachdev