" बाप बड़ा न भैया सबसे बड़ा रुपैया" ये कहावत चरितार्थ होते दिखी जब आईपीएल इस -३ के लिए खिलाड़ियों की नीलामी बहस का मुद्दा बनी |खेल पहले व्यवसाय और अब राजनीती के नए रंग में रंग चुकी है | व्यवसाय बने इस खेल में खिलाडियों की नीलामी हुई |पाकिस्तान के एक भी खिलाड़ी फ्रेंचाइज़ी मालिक के द्वारा नहीं चुने गए | सवाल और आरोपों के दौर ने तूल पकड़ ली है| |वाजिब ही है आखिर पिछले बीसी ओवर के चैंपियंस में किसी में ऐसी कूबत नहीं की उन्हें चुना जा सके |या फिर इस खेल ने भी राजनीती का रंग ले लिया है | भारत में इस खेल के आका ललित मोदी ने मीडिया को बताया कि उन खिलाड़ियों ने डेडलाइन मिस किया |पाकिस्तान के 11 खिलाड़ियों में से एक भी इंडियन प्रीमियर लीग की नीलामी में नहीं बिक सका।
पाकिस्तानी क्रिकेटर अफ़रीदी कहते हैं कि यह क्रिकेट टीम का नहीं, बल्कि पाकिस्तान का अपमान है, उन्होंने ऐसा बताया कि इसका अंदेशा उन्हें पहले से था । कुछ और दबावों, कारणों, राजनीति की तरफ़। दूसरी ओरइस बात पर भी उन्होने जोर दिया कि ये पूरी तरह से टीमों के मालिकों की पसंद का मसला है कि वो किसे लेंगे और किसे नहीं.
अब बहस यह चल निकली है कि क्या पाकिस्तान का एक भी खिलाड़ी आईपीएल में खेलने के काबिल नहीं। कहीं खेल के लिए खिलाड़ी की क्षमताओं के बजाय उसकी पहचान, राष्ट्रीयता और संप्रदाय भी मानक तो नहीं बन रहे| या सुरक्षा और वीज़ा जैसी चिंताओं ने नीलामी को प्रभावित किया|क्या इस तरह पाकिस्तान में क्रिकेट को और खेल भावना को नुकसान नहीं होगा. कितने गंभीर लगते हैं टीमों के मालिक खेल भावना और खिलाड़ियों के प्रति क्या इन मालिकों के निर्णय खेल भावना को आह़त नहीं करती है |
गीत संगीत औए संस्कृति के माध्यम से हम एक दुसरे को करीब लाने की जुगार में लगे रहते है तो ये खेल क्यों नहीं |क्या ये सवाल हमारे मन में प्रस्फुटित नहीं होने चाहिए | पाकिस्तान को शायद उन कारणों पर आत्मविश्लेषण करना चाहिए जिनकी वजह से भारत और पाकिस्तीन के रिश्तों में तनाव पैदा किया है|आज इन दो देशों के बीच शांति, स्थिरता और समृद्धि को बुरी तरह से प्रभावित किया है|आईपीएल जैसा व्यवसायिक आयोजन भारत सरकार के दायरे में नहीं आता है क्या ये सच वास्तविकता से परे है या सरकार ऐसा बयान देकर अपना पल्ला झाड रहे हैं।
क्या खेल भावना पर देशप्रेम हावी हो रहा है या फिर इसे राजनीति का अमली जामा पहनाया जा रहा है ?