Monday, January 18, 2010

कवि की कल्पना

घूम गया जो चक्र, उसी की ओर देखता जाता हूं।

प्रशंसा के अल्फ़ाजों में ,खुद की लेखनी को पाता हूं॥


पथिक बना गन्तव्य को देख, लालच को अब अपनाता हूं।

घूम गया जो चक्र, उसी की ओर देखता जाता हूं||


शब्दों में अब वह जोश नहीं आवेश नहीं मैं पाता हूं।

घूम गया जो चक्र, उसी की ओर देखता जाता हूं||


वाह-वाह और बहुत खूब से मन को हर्षित कर पाता हूं|

घूम गया जो चक्र, उसी की ओर देखता जाता हूं||


कविता जीवन का श्रोत कहां, इसे हसीं का पात्र बनाता हूं|

घूम गया जो चक्र, उसी की ओर देखता जाता हूं||

5 comments:

Anonymous said...

wah kya baat hai......
bahut achha likha hai....

ULKASHM said...

sundar......Ati sundar... mere pass.. alfaz nahi hai... lage raho... u will b on top soon.

Anonymous said...

शब्दों में अब वह जोश नहीं आवेश नहीं मैं पाता हूं।

घूम गया जो चक्र, उसी की ओर देखता जाता हूं||



वाह-वाह और बहुत खूब से मन को हर्षित कर पाता हूं|

घूम गया जो चक्र, उसी की ओर देखता जाता हूं||



कविता जीवन का श्रोत कहां, इसे हसीं का पात्र बनाता हूं|

घूम गया जो चक्र, उसी की ओर देखता जाता हूं|


shuru ke ten paragraph bahut nahee samajh paayaa.. aakhiri ke teen bahut behatareen the..

शशि "सागर" said...

gautam babu
bahut hee sundar rachna...man k udweg aur sanshay ko sundartaa se chtrit kiyaa hai aapne.
lekhnee acchee aur paripakw bhee lagee.

richa sharma said...

Hey dost, bahut khub kaha hai tumne. Magar mai heraan hun ki mera ye dost itna sanjeeda hai aur mujhe is baat ki khabar tak nahi hai. All the very best for your Blog and have a nice time.

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