जिन्दगी एक ख्वाब है जिसे देखने को जीता हूँ |
अब गम के आंसुओं को मैं अकेला पीता हूँ ||
मैं भी हँसता था कभी औरों की ख़ुशी को देखकर
आज अपनी ख़ुशी को भी तन्हाइयों में समेटता हूँ |
मैं बंदगी करता खुदा की अच्छाई को पाने कें लिए
इल्म है इतना की बातों को जुमलों में समेटता हूँ ||
ये शहर अच्छा नहीं अपने गाँव की यादों में
रोजी रोटी के लिए बस उन यादों को समेटता हूँ
क्या कहूं मैं कहना चाहूं ..............
जिदगी एक ख्वाब है जिसे देखने ............
3 comments:
acchi kabita,bhai
eska personal hona ese acchi bana rahi hai.i hope, jab tum personal to impersonal ki taraf jaoge, Maashah-Allah bahut hi acchi poem likhoge. wish u all the best.
gautam babu..
rachna achhee hui hai...
badee hee pyaaree soch hai...
achha laga ye andaaz..
lekhnee ko yun hee nikharte rahen..
gautam sir baat to apne apni dil kilikhi hai lekin kya kijiyega duniya ka yahi dastoor hai bas ise samajhkar chalte jayiye ?????????
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