Tuesday, February 8, 2011

काश ऐसा न होता !

हौसले भी थम जाते गर तूफ़ान ना आया होता |
दिन नहीं होते गर शाम ना आया होता ||

काँटों से कोई दामन ना बचाया होता |
गर फूलों से भी जख्म ना खाया होता ||
...
इबादत के अल्फाज़ ना आये होते
गर कोई किसी का दिल दुखाया ना होता ||

ये वक्त की नजाकत है वरना साहिल ना होते
गर खुदा ने सागर की गहराई ना बनाया होता ||


Thursday, February 3, 2011

पत्रकार हो तो टी. वी . पर दिखो

शाम हो चुकी थी, सूरज अपनी रोशनी को धुन्ध मे लपेटे रात की अगवानी में लगा था, एक खटिये पर बैठकर चाय पी रहा था , चाय मे चीनी थोडा ज्यादे था , घर में लाईट नहीं है, छोटे भाई ने अपनी कमाई से एक लालटेन खरीदी है उसी की रोशनी में सब काम होता है | इसलिए शायद मां ने चीनी ज्यादे दे दी होगी |लगता है कि उनकी उम्र अब ज्यादा हो चुकी है और उनकी आँखों की रोशनी भी कम होती जा रही है ,एक लम्बे अरसे बाद घर गया था |कुछ लोगों से मैं मिल आया तो कुछ अभी बांकी थे जो गाँव में ही रहते हैं और पैसे के अभाव में अपनी पढ़ाई छोड़कर अपने काम रोजगार में लग गए थे | अब अच्छा कमाते हैं और खुश भी हैं |

कुछ महीनो पहले नयी नौकरी मिली है , उसके बाद घर का यह पहला दौरा था ! ऐसा इसलिए कह रहहा हूँ क्योकि रोजी -रोटी के चक्कर में तो घर जैसे विदेश हो गया हो | विवेक मेरे उन घनिष्ट मित्रों में से है जिसे लंगुटिया यार कहा जाए तो गलत नहीं होगा |घर जाने पर मेरी कोशिश होती है कि इस बन्दे से जरूर मिला जाए |मैं एक पत्रकार की नौकरी पाकर गया था सो घर वाले खुश थे और सब कुशल क्षेम पूछ रहे थे |

गावों में आज भी नौकरी का मतलब सरकारी नौकरी से ही है , अगर वो नहीं मिला तो आप प्राइवेट नौकरी वाले कहे जाते हैं और आपका भविष्य सुनिश्चित नहीं है | बेटी का बाप भी आपको कम तिलक देना पसंद करेगा बजाय इसके कि कोई सरकारी नौकरी वाला उसे मिल जाए ,वो भले राज्य सरकार के नयी बहाले में बहाल हुआ मास्टर ही क्यों ना हो | वाकई हो भी क्यों ना आखिर सरकारी नौकरी में पेंशन भी तो मिल जाते हैं ना |

मैं ने सोचा क्यों ना खाना खाने से पहले एक आध दोस्तों से मिल ही लूं , सो विवेक की घर की तरफ चल पडा ,गावों में ठंढ तब भी बहुत पड़ रही थी , माँ ने कहा ओढना (चादर ) तो ओढ़ लो तब जाना |उनकी बात को अनसुना करते हुए बस मैं अपनी धुन में चल पडा |

विवेक का घर गॉव के दूरे मोहल्ले में हैं , जैसे ही उसके घर पहुंचा और उसने तपाक से गले लगाया तो मानो जैसे कलेजे को ठंडक पहुँची हो , जाड़े में भी गर्मी का एहसास हो रहा हो |उसने चाय के लिए पूछा लेकिन मैं ने मना कर दिया , उसके हाल चाल पूछने के बाद मै ने भी उसका हाल चाल पूछा और खूब सारी बातें होने लगी | तू तो अब बड़ा आदमी हो गया है........ उसकी एक बात बड़ी ही प्यारी और प्रश्नवाचक चिन्ह के रूप में मेरे मन में अटक गयी |उसने बड़ी ही बेवाकी और सहज होकर पूछा अच्छा एक बात बताओ तुम पत्रकार हो , लेकिन मैं ने यार कभी तुम्हे टी. वी पर नहीं देखा |उसके इस प्रश्न पर मैं थोड़ी देर तू निरुतर रहा फिर उसी के अंदाज़ में कहा कि अभी टी. वी . पर दिखने में कई साल लग जायेंगे |वो इस बात पर ठहाके लगाते हुए हस पडा और कहा यार और मेहनत करो और जल्दी से जल्दी टी. वी. पर आ जाओ |

वाकई उसके इस सवाल को मैं हमेशा याद रखूंगा कि आज भी गावों में पत्रकार का मतलब सिर्फ टी. वी . पर दिखना है ,मेरे एक बड़े भाई साहब ने भी कुछ इसी अंदाज़ में पूछा कि शशि शेखर का तो हिंदुस्तान में इतना बड़ा फोटो भी आता है और लिखता भी बढियां है |तुम भी कुछ वैसा ही करो जिस से कही नाम हो छप सको |मेरे मना करने के बावजूद विवेक की पिलाई चाय में जहां दोस्ती कि मिठास थी वहीं जिन्दगी का एक कड़वा सच भी उसी मिठास में घुला था कि भैया पत्रकार हो तो लोगों को दिखो |

उसके इस सवाल को अपने मन की गठरी में समेटे बस चल पडा |मैं ने उसे पत्रकार के मतलब भी समझाए और टी. वी पर दिखने वालों की मेहनत और चापलूसी का फ़ॉर्मूला भी |वो शायद समझ गया होगा |


Sunday, December 5, 2010

ख्वाब था शायद !

नींद आ जाती मुझे भी, अगर उनकी बाहों का सहारा होता|
बन जाता रेत भी अगर उनका प्यार किनारा होता ||


रातें अब भी उतनी ही खामोशी से रोज आते हैं |
आँखें खुली रह जाती हैं,और हम उन्हें सोच पाते हैं||


उनसे वादा किया था कि अब उन्हें सपनो में भी नहीं लाउंगा|
भावनाओं और जज्बातों के बोल कभी नहीं लिख पाउँगा||


मेरी परछाई ने भी है ,अब मुझसे नाता तोड़ लिया|
जीवन के हर रंग से मैं ने अब अपना मुंह मोड़ लिया ||


Wednesday, December 1, 2010

विकास के रथ पर बिहार

"मैं बिहारी हूँ और मुझे गर्व होता है यह कहते हुए" ये बात सिर्फ अकेले मेरी कहानी नहीं है बल्कि उन तमाम बिहारियों की है जो अपने राज्य से दूर रहकर अपने रोजी रोटी की तलाश में हैं, या अनवरत प्रयास रत हैं |राज्य की जनता को बिहारी होने का गर्व महसूस हो रहा है , और हो भी क्यों ना क्योंकि आज हमारी तुलना गुजरात से की जाने लगी है |नीतीश और उसके गठबंधन के सरकार की जीत कोई जादू नहीं है ,बिहार की जनता ने विकास को अपनाया है और इस सत्य से मुह नहीं मोड़ा जा सकता है |

चुनाव परिणाम घोषित होने वाले दिन मेरे एक मित्र प्रशांत जी ने मुंबई से फ़ोन पर बधाई दी, और कहा कि आखिर विकास की जीत हुई |और अब विकास में बदलाव होगा | बच गया मुझे तो मानो डर लग रहा था कि कही उलट फेर ना हो जाए उनके शब्द में उनका आत्मविश्वास दिख रहा था और खुशी भी झाँक रही थी |

राज्य में बहुत कुछ बदला है, और बहुत कुछ बदलना बांकी है , बेशक अब बिहार की सडकें बेहतर हुई है, और बच्चे भी स्कूल जाने लगे हैं ,यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि आज राज्य एक प्रतिमूर्ती की भूमिका निभा रहा है| अगर राज्य की जनता ने सरकार में बिश्वास दिखाय है तो सरकार को भी यहाँ की जनता की आशाओं और उम्मीदों पर खडा उतरना होगा |

"ये पब्लिक है सब जानती है", लतीफे और जुमलों का ज़माना लद गया | अब जरूरत है विकास की ना कि झूठे वादों की | राज्य की जनता की जागरूकता ने यह साबित कर दिया है कि वो विकल्प ना होने की वजह से एस नहीं कर रही है बल्कि अपनी पूरी बुधिमत्ता से यह निर्णय लिया है जो कई मायनों में राज्य के विकास में सहायक साबित होगा |

हम अपने राज्य को अगर सपनो का बिहार कहें तो शायद एक सुखद अनुभूति होती है , लेकिन सपनो का बिहार बनाना केवल एक सरकार और कुछेक नेताओं के बस में नहीं है | यहाँ की हर जनता को अब सरकार के साथ खडा होना होगा और विश्वास दिलाना होगा कि हम आपके साथ हैं ना सिर्फ आपको जिताने के लिए बल्कि जमीनी तौर पर काम करने के लिए भी |

राज्य की सरकार ने जनता को विकास का मतलब समझाया और उसे अपने काम से परिभाषित भी किया |अब हम यह नहीं कह सकते कि सरकार सो रही है|इस सरकार को हम ने अगर दुबारा मौक़ा दिया है तो सिर्फ इसलिए कि विकास की जो ललक यहाँ की जनता में पैदा हुई है उस पर कितना काम हो सकता है |

नीतीश बाबु अब अपनी इंजीनयरिंग से कैसे बिहार की दशा और दिशा परिवर्तन के लिए सोचते हैं यह एक देखने लायक बात होगी | राज्य की जनता मूर्ख नहीं है जिसे आसानी से ठगा जा सकता है|बिहार के विकास का भविष्य अब सरकार और जनता के दोहरे घोड़े वाले बघी के लगाम से बांधी जा चुकी है|

जरूरत है कि नीतीश एक अच्छे सारथी की भूमिका निभाएं तो राज्य का यह रथ जनता उन्हें बार बार चलाने का मौक़ा देगी |

Monday, November 15, 2010

Every child is special:

Every day is special in our country and for a special cause. Nov 14 is also among those. We commemorate every day in our own style and fashion. But keep ourselves aloof from the hard reality .Only by honoring some of the children for their excellence or bravery we can’t say that we have reached the milestone. “picture abhi baanki hai dost”.

The rules, regulations & acts are numerous in our constitution but these are merely on the papers to say or to watch. Nothing can be gain said against the achievement of the UPA-2 but there is an essential need of proper implementation of those rules and regulations. The UPA has credited itself with the implementation of RTE {Right to education} but most of the children are busy working as a child labour even @ this juncture of life.


Children aged 6 or 7 don’t have the sense to know that what is RTE. The world is becoming a global village but thinking of the aam aadmi in our country is not globalizing in accordance with the need of the time .

Now every single human will have to think in a better perspective for their own children. The paper work of the government is not benefiting the children who work with their mother or father earning their livelihoods. They always remain deprived from the facilities of getting educated.

On children’s day, they dare to think beyond their imagination. The trends have changed despite all the obstacles kids from poor families are determined to achieve their goals and end their parents’ hardship. They have wings to fly but Poverty , Malnutrition, Gender biasness are the ultimate limits which is holding the threads of their imaginative kites .

Every one knows that A "Children's Day", as an event, is celebrated on various days {as an International Children's Day on June 1 & a Universal Children's Day on November 20. in many places around the world, in particular to honor children. But the real honour would be given only when the childhood of every child would be safe.not working in the mills to eradicate their poverty but with the books enlightening their futures.

LinkWithin

Related Posts with Thumbnails