Sunday, January 24, 2010
विज्ञापन पर विवाद
अंगरेजी में एक कहावत है “Haste is sure to make us go wrong” और इस कहावत कों चरितार्थ करते हुएदिखी भारत सरकार के द्वारा देश के प्रमुख अखबारों कों दिए गए विज्ञापन |देखने कों कुछ ऐसा मिला जब सरकारके एक प्रमुख अख़बार को दिए सरकारी विज्ञापन में पाकिस्तान के पूर्व एयर चीफ़ मार्शल की तस्वीर होने परविवाद पैदा हो गया | ये विज्ञापन भ्रूण ह्त्या के विरोध में आम जनता से एक अपील है | भ्रूण-हत्या के ख़िलाफ़अपील करने वाला ये विज्ञापन महिला और बाल विकास मंत्रालय ने तैयार किया है|
विज्ञापन में कई जानी-मानी हस्तियों की तस्वीरों के साथ पाकिस्तान के पूर्व एयर चीफ मार्शल तनवीर महमूदअहमद की तस्वीर भी छपी है|इस विज्ञापन में जानी-मानी हस्तियों का उल्लेख देते हुए इन्हें जन्म देने वाली माँकी अहमियत के बारे में बताया गया है और गर्भ में बच्चियों को न मारने की अपील की गई है| इस अपील नेविवाद का दामन पकर लिया है | इसे लापरवाही कहें या भूल , ये बात तो बिलकुल स्पष्ट हो गयी है की सरकार केद्वारा दिए गए विज्ञापनों में अगर ऐसी चूक हो सकती है , तो मीडिया के विश्वसनीयता पर सवाल तो खडा होगा ही |
लेकिन इस बार मीडिया दोषी नहीं है | मौजूदा व्यवस्था के तहत विज्ञापन में छापी जाने वाली सारी सामग्रीडीएवीपी को संबंधित मंत्रालय देता है. डीएवीपी का काम प्रूफ़ के तौर पर विज्ञापन को देखना और फिर छपवाने काहोता है|तो मीडिया इसमें कोई काट छांट कर ही नहीं सकती है |इसे गैर जिम्मेदारी कहें या फिर सरकार कीअनदेखी जिसके कारण ऐसी गलतियां होती है |सरकार ने इस गलती के जांच के लिए कमिटी का गठन भी करदिया है और देश की आम जनता से माफी भी माँगी है |लेकिन सवाल यह खडा होता है की जांच और कमिटियाँ तोमुद्दे के ठन्डे बस्ते में जाने के बाद ज्यादे कुछ कर नहीं पाती है |
विपक्ष कों सरकार के खिलाफ चिल्लाने के लिए मुद्दे चाहिए जो उसे समय समय पर मिलता भी रहता है |भारतीयजनता पार्टी (भाजपा) ने इस पर कड़ी प्रतिक्रिया जताते हुए महिला और बाल विकास मंत्री कृष्णा तीरथ कोमंत्रिमंडल से हटाने की माँग की है|आम जनता के मन में प्रश्न यह है की आखिर ऐसी चूक के लिए जिम्मेदार हैकौन ? सरकार ,उसका मंत्रालय या विज्ञापन एजेंसी |आखिर सवाल यह है की पाकिस्तान के पूर्व एयर चीफ़ मार्शलकी तस्वीर को एक मंत्रालय के विज्ञापन में लगाए जाने का क्या उद्देशय है| क्या भारत के वायु सेना अध्यक्ष, थलसेना अध्यक्ष या नौसेना प्रमुख की तस्वीर यहाँ नहीं लगाई जा सकती थी|सरकार इस मामले में अपनी दलील पेशकर रही है ,लेकिन यह तो आम जन की भावना कों आहत करने वाली बात है|
विज्ञापन में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, संयुक्त प्रगतिशील गठबंधऩ (यूपीए) की चेयरमैन सोनिया गांधी, भारत कोमें वर्ल्ड कप दिलाने वाली क्रिकेट टीम के कप्तान कपिल देव, बल्लेबाज़ और मौजूदा भारतीय क्रिकेट टीम केउप कप्तान वीरेंदर सहवाग, पद्म विभूषण से सम्मानित सरोद वादक उस्ताद अमजद अली ख़ान और उनके बेटोंअमान और अयान अली बंगश के साथ पूर्व पाकिस्तानी सैन्य अधिकारी की तस्वीर छपी है।
विज्ञापन भले ही अपने मकसद में कामयाब बताया जा रहा हो लेकिन इस गलती की जिम्मेदारी या अपराधबोधजैसी कोई भी बात सरकार की तरफ से नहीं दिखाई दे रही है |आम जनता के मन में एक सवाल घुमर रहा है वो यहकी आखिर ये गलती है किसकी सरकार ,मंत्रालय या विज्ञापन एजेंसी की ?
Thursday, January 21, 2010
पाकिस्तानी क्यों नहीं ?
" बाप बड़ा न भैया सबसे बड़ा रुपैया" ये कहावत चरितार्थ होते दिखी जब आईपीएल इस -३ के लिए खिलाड़ियों की नीलामी बहस का मुद्दा बनी |खेल पहले व्यवसाय और अब राजनीती के नए रंग में रंग चुकी है | व्यवसाय बने इस खेल में खिलाडियों की नीलामी हुई |पाकिस्तान के एक भी खिलाड़ी फ्रेंचाइज़ी मालिक के द्वारा नहीं चुने गए | सवाल और आरोपों के दौर ने तूल पकड़ ली है| |वाजिब ही है आखिर पिछले बीसी ओवर के चैंपियंस में किसी में ऐसी कूबत नहीं की उन्हें चुना जा सके |या फिर इस खेल ने भी राजनीती का रंग ले लिया है | भारत में इस खेल के आका ललित मोदी ने मीडिया को बताया कि उन खिलाड़ियों ने डेडलाइन मिस किया |पाकिस्तान के 11 खिलाड़ियों में से एक भी इंडियन प्रीमियर लीग की नीलामी में नहीं बिक सका।
पाकिस्तानी क्रिकेटर अफ़रीदी कहते हैं कि यह क्रिकेट टीम का नहीं, बल्कि पाकिस्तान का अपमान है, उन्होंने ऐसा बताया कि इसका अंदेशा उन्हें पहले से था । कुछ और दबावों, कारणों, राजनीति की तरफ़। दूसरी ओरइस बात पर भी उन्होने जोर दिया कि ये पूरी तरह से टीमों के मालिकों की पसंद का मसला है कि वो किसे लेंगे और किसे नहीं.
अब बहस यह चल निकली है कि क्या पाकिस्तान का एक भी खिलाड़ी आईपीएल में खेलने के काबिल नहीं। कहीं खेल के लिए खिलाड़ी की क्षमताओं के बजाय उसकी पहचान, राष्ट्रीयता और संप्रदाय भी मानक तो नहीं बन रहे| या सुरक्षा और वीज़ा जैसी चिंताओं ने नीलामी को प्रभावित किया|क्या इस तरह पाकिस्तान में क्रिकेट को और खेल भावना को नुकसान नहीं होगा. कितने गंभीर लगते हैं टीमों के मालिक खेल भावना और खिलाड़ियों के प्रति क्या इन मालिकों के निर्णय खेल भावना को आह़त नहीं करती है |
गीत संगीत औए संस्कृति के माध्यम से हम एक दुसरे को करीब लाने की जुगार में लगे रहते है तो ये खेल क्यों नहीं |क्या ये सवाल हमारे मन में प्रस्फुटित नहीं होने चाहिए | पाकिस्तान को शायद उन कारणों पर आत्मविश्लेषण करना चाहिए जिनकी वजह से भारत और पाकिस्तीन के रिश्तों में तनाव पैदा किया है|आज इन दो देशों के बीच शांति, स्थिरता और समृद्धि को बुरी तरह से प्रभावित किया है|आईपीएल जैसा व्यवसायिक आयोजन भारत सरकार के दायरे में नहीं आता है क्या ये सच वास्तविकता से परे है या सरकार ऐसा बयान देकर अपना पल्ला झाड रहे हैं।
क्या खेल भावना पर देशप्रेम हावी हो रहा है या फिर इसे राजनीति का अमली जामा पहनाया जा रहा है ?
Monday, January 18, 2010
कवि की कल्पना
घूम गया जो चक्र, उसी की ओर देखता जाता हूं।
प्रशंसा के अल्फ़ाजों में ,खुद की लेखनी को पाता हूं॥
पथिक बना गन्तव्य को देख, लालच को अब अपनाता हूं।
घूम गया जो चक्र, उसी की ओर देखता जाता हूं||
शब्दों में अब वह जोश नहीं आवेश नहीं मैं पाता हूं।
घूम गया जो चक्र, उसी की ओर देखता जाता हूं||
वाह-वाह और बहुत खूब से मन को हर्षित कर पाता हूं|
घूम गया जो चक्र, उसी की ओर देखता जाता हूं||
कविता जीवन का श्रोत कहां, इसे हसीं का पात्र बनाता हूं|
घूम गया जो चक्र, उसी की ओर देखता जाता हूं||
Thursday, January 14, 2010
फाइनल फोबिया
"जीते तो ताली हारे तो गाली" भारतीय क्रिकेट टीम के लिए ये सबसे सटीक और सहज पुरस्कार है |इस देश में धर्म माने जाने वाले इस खेल और खेलप्रेमियों का भावनात्मक लगाव कुछ यही बयाँ करता है |वही हुआ जिसका डर था|धोनी की युवा और सशक्त मानी जाने वाली टीम एक बार फिर फाइनल के डर कों नहीं झेल पायी|खेल के आगाज़ ने ही अंजाम का रूख तय कर दिया था |धन्यवाद के पात्र तो रैना और जडेजा है जिन्होंने मुश्किल क्षणों में दवाब में डूबती नैया कों शतकीय साझेदारी से साहिल तक पहुंचाने की कोशिश की |
टेस्ट में नम्बर वन बनने वाली टीम के पांच कागजी शेर ताश के पत्तो की तरह ढेर होते दिखे |आशावादी सोच ने दर्शको के आँखों में आंसू तक ला दिए |"जीत जीत होती है और इसके लिए एक ख़ास जज्बे की जरूरत होती है" ,मैच के ठीक बाद क्रिकेट विशलेषक का गुस्सा (कपिलदेव ,अतुल वासन ) सातवे आसमान पर था |आखिर हो भी क्यों ना ये शायद इस क्रिकेट की इस कैप की अहमियत कों ज्यादे सही तरीके से अंजाम तक लाने की जुगार में लगे रहते थे|
अंगरेजी में एक कहावत है ( Hope is the cause of sorrow )शायद भारतीय दर्शक कों क्रिकेट खिलाडियों ने नए साल का ये बेहतरीन तोहफा दिया हो ! कहते है की जीत के लिए एक ख़ास किस्म की जज्बे की जरूरत होती है ,मिस फील्डिंग ,कैच टपकाना,हाथ उठाकर दुसरे फिल्डर की तरफ इशारा करना की भैया गेंद जा रही है पकड़ लेना |ये सब तो था ही हमारे खिलाडियों में आखिर ये फाइनल जो खेल रहे थे |इतिहास गवाह है कप्तान कोई भी क्यों ना हो हम फाइनल तो हार ही जाते है |विदेशों में सबकी नेत्रित्व क्षमता पर एक सवालिया निशान लग ही जाता है |
श्री लंकाई टीम इस जीत की हकदार सही मायने में थी ,क्योंकि वो भारतीय खिलाड़ियों की अपेक्षा सभी क्षेत्रों में उन पर भारी पर रहे थे |हारने के बाद भी पुरस्कार वितरण समारोह के दौरान युवराज की बतीसी कैमरे के सामने बखूबी दिख रही थी | अरे भाई हो सकता है आपको ये वाक्य थोड़ा दुःख दे सकता है |क्या करू भाई मैं भी तो एक भारतीय दर्शक का ही दिल रखता हूँ | "कारज धीरे होत है काहे होत अधीर" धीरे धीरे ही सही जीत की आस कों हम शब्दों की मजबूती तो जरूर दे सकते है | आशा करते है की हमारी टीम फाइनल फोबिया से शायद उबर पाए |क्रिकेट की भाषा में टफ लक दिस टाइम ,बेटर लक नेक्स्ट टाइम|
Monday, January 11, 2010
हॉकी की हकीकत
पुरस्कार की जगह तिरस्कार ,सम्मान की जगह अपमान ,वेतन की जगह सांत्वना के शब्द ,क्या इन से पेट भर सकता है |ये सारे शब्द हैं भारतीय हॉकी के संचालक के |खिलाडियों ने अपने वेतन की मांग की क्या कर दी, कि देशभावना और खेलभावना पर सवाल खड़े कर दिए गए |मीडिया भी अपनी भूमिका से पीछे नहीं हटी | बागी ,बगावत और ना जाने कितने उपमाओं से इन खिलाडियों को अलंकृत किया | उन्हें फरमान जारी कर दी गयी की जवाब दे ,या फिर नयी टीम का चयन होगा |नैतिकता की बात करने वालो कों शायद ये नहीं पता कि देशभावना सर आँखों पर है लेकिन पेट की भूख तो खिलाड़ियों कों भी मिटानी पड़ती है ना उनकी भी कुछ जिम्मेदारिया है |गावों में एक कहावत प्रचलित है "भूखे भजन ना होए गोपाला " तात्पर्य यह कि भूखे रह कर तो हम भगवान् की भी पूजा नहीं कर सकते |
ये कितने दुःख की बात है देश के राष्ट्रीय खेल और खिलाड़ी आज इस अपमान का हिस्सा बन रहे है |यही नहीं वो तो बस अपने पेट भरने के लिए अपने वेतन की मांग कर रहे है |उन्हें क्रिकेट जैसे आर्थिक खेल के खिलाडियों कों दी जा रही सुविधाओं और सम्मानों से कोई गुरेज नहीं, लेकिन उनका मेहनताना तो कम से कम समय पर मिल जाए ओलम्पिक जैसे खेलों में पदक दिलाने वाले खेलों की आज ये नौबत है कि एक साल पहले किये वादे भी पूरे नहीं किये गए | बात निलंबन तक पहुँच चुकी है ,क्या इनके द्वारा इनकी मांग गलत है ?भारत में फरवरी में जहां हॉकी का विश्व कप होने वाला है वहाँ इन खिलाडियों की तैयारी इनकी व्यथा से स्पष्ट मालूम पड़ती है |
खिलाडियों को दिया गया अल्टीमेटम हकीकत है, या एक बहाना ये तो जल्द ही सामने आ जाएगा |लेकिन राष्ट्रीय खेल की ऐसी स्थिति और खिलाडियों की बगावत ये स्पष्ट करती है कि वेतन और प्रोत्साहन राशि के रूप में उन्हें सिर्फ सांत्वना के शब्द सुनने कों मिलते है|देश खुद कों आर्थिक दृष्टिकोण से विश्व के मानस पटल पर उभरती हुई अर्थवयवस्था बताती है | क्या इनकी मजबूती चन्द खिलाड़ियों के पेट भरने का इंतजाम नहीं कर सकती है |
जहां एक तरफ शाहरुख खान ने इनकी मांग को जायज बताया वही दूसरी तरफ शिवराज सिंह चौहान ने इस टीम के स्पोंशेर्शिप लेने की बात कही |देश का राष्ट्रीय खेल राजनितिक रंगों में डूबता दिख रहा है |ये तो लाजमी है कि बयानबाज़ी और सान्त्वाना से इनके पेट नहीं भर सकते है | वक्त की नजाकत को देखते हुए एक बात तो साफ़ है कि गेंहू के साथ घुन भी पिस जाते है |