तुम्हारी आंखो के साहिल से दूर कहीं अपना आशियाना बनाऊ कैसे।
तिनकों के घरौंदे में अब रह्कर खुद को समझाऊ कैसे ॥
आरजू की तपिश में पिघलकर भी तेरा नाम ही अच्छा लगता है ।
विरह की आग मे जलकर खाक बन जाना अपना नसीब लगता है ॥
अपने वजूद को खोकर भी खुद को तेरी लौ में जलाउं कैसे।
खाली हाथ आयी इस शाम में तेरी यादों को भुलाउं कैसे ।।
वक्त के हसी सितम ने अब मेरा दामन थाम लिया है ।
इंतजार की एक एक घडी ने मेरे प्यार को नया आयाम दिया है॥