Monday, June 21, 2010

why a day ?

A country with the adequacy of rituals and traditions celebrate Father's day with full enthusiasm . This is candid that now every person in the busy and hectic life has even a single day just to celebrate this or to make father happy by saying “happy father's day” or by making a phone call.

"Love is a temporary madness. It erupts like an earthquake and then subsides. And when it subsides you have to make a decision” quoted- St. Augustine. The love of father and son is taking a turn in such a way that is isolating both the son and the Father .

Now the tradition has been changing , the dominance of English culture has changed the mind ,
attitude and the thinking of the new generation towards the sentiment, love and the dedication of a Father . Being a father is matter of pride but now a days the tradition of Second Inning house for a father is considered to be the right destination.

Various people tweeted on the social networking site twitter Sunday to show love for their Father.

“ Happy Father's Day to all dads. Spent mine with my twin sons in Hong Kong,surrounded by love &laughter”tweeted by Shashi Tharoor reveals the phrasal love of a Father to their kids .

The celebration of the day means a day for Father . It should be the entire year to love a Father why a day .every thing is changing with the changing of time but this relation and the commemoration of a day may hurt Father who devotes the entire life to make someone Father

Friday, May 28, 2010

नक्सली होने का दंभ !

आदर्श की बात वो करते हैं , जीवन की लड़ाई इंसानों से लड़ते हैं
वो बात कहाँ हैं इनमे अब ,जिस पर ये नक्सली होने का दंभ भरते हैं

इस प्रजातंत्र में भी देखो सरकार तो इनसे डरते हैं
वो बात कहाँ हैं इनमे अब ,जिस पर ये नक्सली होने का दंभ भरते हैं |

हिंसा का दामन थामे हैं ये हक़ की लड़ाई लड़ते हैं |
वो बात कहाँ हैं इनमे अब ,जिस पर ये नक्सली होने का दंभ भरते हैं ||

जज्बातों में उठी बन्दूक में ये प्रतिशोध की गोली भरते हैं |
वो बात कहाँ हैं इनमे अब ,जिस पर ये नक्सली होने का दंभ भरते हैं ||

अब आम लोग भी चौपालों पर इनकी रणनीती पर हसते हैं |
वो बात कहाँ हैं इनमे अब ,जिस पर ये नक्सली होने का दंभ भरते हैं ||

Thursday, May 20, 2010

THE ROOT OF NAXALISM

Whether operation green hunt actually exits or the diplomacy of the government insists is a matter of controversy . The war in chhatisgarh , Dantewada, Lalgadh or in any part of the country is only providing the story that how the Maoists are thinking ,planning and implementing their ideology and the work. The cycle of violence has been building on and on in sustainable way to raise various problems against the government .

This may be called the 1970's Bollywood route of taking the law in one's hand as we find that Maoists are diverting themselves from the path of their own ideology and working .The death of a Kanu Sanayaal is a candid example of it. If the emphasis of this exploration is on the Naxalite phenomenon it is not because other modes and forms of agitation are less important but only because the method of struggle chosen by Naxalite has brought the problem to a head .

In the latest incident , the primary target was probably the group of special police officers who were travelling on the roof of the bus. The bus full of civilian passengers witnessed the death of many innocent lives also.


This may be said that the direct harassment of poor through usurping their lands and forest rights is raising the ' worst called internal problem of the country as Naxalism ' in the words of our prime minister .The foul mouthed government's development reveals an another story of co relation of the development and the Naxalism can be segmented as followings .

High rate of SC or ST population
Low literacy;
High infant mortality
Low urbanization;
High forest cover ;
High share of agricultural Labour
Low per capita food grain production
Low road network penetration
Low Financial inclusion ;
High share of rural households without assets .

This is a development cum governance deficit




These are some of the problems which can be counted on the fingers but the problems which are really worsening the situation in those Naxal affected areas even witness the death of many lives who are innocent and has nothing to do either with the government or their policy for the eradication of Naxal or Naxalism .


As for the Maoist , they need to realise that this is not a war they can win .The government must act in sophisticated way to tackle with such a problem which is worsening day by day .Moderate attacks can never be the solution of this permanent problem .

Wednesday, May 19, 2010

हिंदुत्व आतंकवाद का उद्भव

मैं हिन्दू हूँ , वो मुसलमान है! देश की जनता आज अपनी पहचान इस तरह बना रही है ,इस तरह नहीं कि "हिन्दू मुस्लिम, सिख, इसाई आपस में हम भाई - भाई" ये आज सिर्फ एक जुमला ही बन कर रह गया है आतंकवादी तो मुसलमान ही होते हैं , इस अवधारणा को हिन्दू और हिंदुत्वादिता ने एक नयी परिभाषा दी है ये अब ना नयी बात है और ना ही किसी से छिपी हुई शुरुआत सन २००२ में हुई जब कुछ हिंदुत्व समुदायों ने इस प्रक्रिया में शामिल करने की कोशिश की भोपाल के रेलवे स्टेशन पर पाया गया बिस्फोटक जो मुसलामानों के तबलीगी जमात को निशाना बानाने के उदेश्य से रखा गया था

आज से आठ सौ साल पहले ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती ने धर्म को परिभाषित करते हुए बताया था कि "जरूरत मंदों की मदद और नि:सहायों की सहायता ही सबसे बड़ा धर्म और सबसे बड़ी पूजा है लेकिन आज जिस धर्म और धार्मिकता की बात होती है वो सिर्फ महज एक ढोंग है जिस इंसान ने आजीवन एक मक्खी तक ना मारी हो धर्म के नाम पर कत्लेआम तक को तैयार रहता है इसे वो अपना स्वाबलंबन बताता है अगर एक मुसलमान बम से कुछ लोगों की जान ले तो वो आतंकवादी और एक हिन्दू बम बनाते हुए पकड़ा जाए या किसी समुदाय विशेष को मारने की कोशिश करे तो वो हिंदुत्व का रक्षक आखिर ये कौन से मापक यंत्र है जिसके जरिये एक ही काम को अलग - अलग नाम और उपाधियो से नवाजा जाता है

अक्टूबर २००७ का अजमेरशरीफ बम धमाका जिसे राजस्थान पुलिस लम्बे समय तक इस्लामी समुदाय का हाथ होना मान रही थी प्रकारांतर में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सदस्य देवन्द्र गुप्ता और उनके दो सहयोगी विष्णु प्रसाद और चन्द्रशेखर पाटीदार की राजस्थान पुलिस के द्वारा की गयी गिरफ्तारी इस दावे को खोखले साबित करती है कि आतंक से मुसलमानों को सरोकार है , हिन्दुओं को नहीं बजरंग दल के नरेश कोंद्वर और हिमांशु पांसे की बम बनाने के दौरान हुयी मौत इस बात का सबूत हैं कि वो ना तो देशभक्ति का कोई काम कर रहे थे और ना ही देश की सभ्यता और संस्कृति में अलख जगाने का फिर उन्हें आतंकवादी कहने में हम परहेज क्यों बरतते हैं
इस देश में हक़ की लड़ाई को नक्सलवाद कहकर सरकार इसे देश की सबसे जटिल आंतरिक समस्या बताती है, देश के लिए हिंदुत्व आतंकवाद का सामने आना समस्या नहीं है , क्योंकि ये एक हिन्दू राष्ट्र है ?वो श्री राम सेने के कार्यकर्ताओं की पब में की गयी पिटाई वाली धमा चौकरी हो या बजरंग दल की गुंडा गर्दी ये असामाजिक तत्व नहीं माने जाते इस समाज में प्रतेक समुदाय को नापने का अलग नपना क्यों ?

२००८ का मालेगांव बम धमाका जिसमे कई हिंदुत्व के रक्षकों को पकड़ा गया क्या वे आतंकवाद को बढ़ावा देने का काम नहीं कर रहे थे आखिर इस धर्म की आग में आम लोगों को क्यों झुलसना पड़ता है एक हिन्दू लम्बी दाढी
वाले को देख कर क्यों भड़क जाता है या फिर उड़ीसा का कंधमाल जिला वैश्वीकरण के इस दौर में धर्म परिवर्तन के कारण हिंसा की आग के लपटों में क्यों शामिल होता है आप अगर ना हिन्दू हैं ना मुसलमान ना सिख हैं ना इसाई अगर आप किसी धर्म से सम्बन्ध नहीं रखते है या धर्म के बंधन से ऊपर उठकर जीवन जी रहे हैं तो मेरे इन सवालों का जवाब जरूर दें

Tuesday, May 18, 2010

सरकार का सरोकार




हमारा देश विकास के पथ पर अग्रसर है ,इस सच से हम आम जनता वाकिफ हैं कांग्रेस की सरकार आने वाले २२ मई को अपने द्वितीय सत्र के एक साल पूरे करने वाली है उपलब्धियों की लम्बी फेहरिश्त में "महिला बिल का पास होना ,शिक्षा सबों के लिए" जैसे कुछ और नाम भी हो सकते हैं लेकिन इस सरकार से भी चूक हुई जो महगाई का विकराल रूप लेकर सामने आया और आम लोगों की दाल रोटी तक लील गया लोग कहते हैं कि आलोचना खुद को प्रकाशित और प्रचारित करने का सबसे आसान तरीका है अगर हम भी इस सरकार की आलोचना करते है तो शायद इसे मजबूती दे रहे हैं और कुछ नहीं

देश का आर्थिक विकास दर ६.५ प्रतिशत को छू रहा है आर्थिक मंदी के दौरान भी सरकार ने इस देश को आर्थिक मंदी की मार से बचाए रखा इस सच से भी हम नहीं भाग सकते है लेकिन एक आम आदमी की वो पुरानी सोच कि उसके पास रोटी , कपड़ा और मकान हो आज भले ही रोटी, कपड़ा और मोबाइल बना दिया गया है लेकिन इस देश की आम जनता आज भी इन मूलभूत चीजों से खुद को कही न कहीं महरूम पा रही है

तेल की कीमतों में बढ़ोतरी , रोजमर्रा की चीजों का दाम तो जैसे आसमान छू रहा हैपिछले छः महीनो से मैं ने घर में दाल बनते नहीं देखा है किसानों को दी गयी सब्सीडी से शायद उत्पादकता को बढाने की बात इस सरकार के जेहन की एक अच्छी सोच कही जा सकती है वहीं दूसरी तरफ इन किसानो के उपजाए गए अनाज को नहीं खरीदा जाना उनके लिए परेशानी का सबब बनते जा रही है

देश खुद को आर्थिक दृष्टिकोण से मजबूत कर रहा है लेकिन इस मजबूती की नीव में गरीबी ,अशिक्षा , नक्सल और न जाने कितनी ऐसी ईंट रखी जा रही है जिस पर बना मकान बहुत स्थायी नहीं हो सकता है अगर देश की सरकार इन आंतरिक समस्यों से जूझने में सफल नहीं हो पा रही है तो विकास की परिभाषा और मानदंड क्या है ? एक आम आदमी की हैसियत से मैं आज तक देश में हो रहे विकास को नहीं समझ पाया हूँ

सड़क का बनाया जाना आम जनता की आँखों को एक ऐसा रास्ता दे रहा है जहाँ से सरकार के किये गए कामों का सही - सही मूल्यांकन किया जा सकता है नरेगा आज भी रोजगार की गारंटी कम मजदूरों के साथ ठगी ज्यादे दिखती है इंदिरा आवास योजना में आवास कम और ऑफिस के चकार ज्यादे काटने पड़ते हैं इस देश की बीस रपये से कम पर सरकार के खोखले वादे आम लोगों की आशाओं को भी खोखली कर रहीं है अगर इस सरकार की आलोचना की जाए तो इसे मजबूती मिल जायेगी , तो ऐसा कौन सा बाण तरकश से निकाला जाए जिसके जरिये इस सरकार की नाकामियों को सामने रखा जा सके

देश के विकास में कांग्रेस की यह सरकार पिछले 6 सालों से कार्यरत और प्रयासरत है लेकिन जिस देश की आम जनता दाने दाने को मोहताज हो वहाँ आर्थिक विकास और वैश्वीकरण के होड़ में शामिल होना ही अगर सरकार को बहुत बड़ी उपलब्धी लगती हो तो जायज है इस देश की आम जनता जो कभी अंग्रेजों और मुगलों का गुलाम हुआ करते थे आज इस प्रजातंत्र में भी सो काल्ड आज़ादी की गुलामी में अपना जीवन गुजर बसर कर रहे हैं

वैसे भी इस देश की जनता बहुत ही भोली है, शोषण और अत्याचार को अपना जन्मसिद्ध अधिकार मानती है जिसे आंख बंद कर देखने और सहने में असीम सुख की प्राप्ति होती है ऐसा लगता है मानो सबका जमीर सो गया है , सूरज के उगने के बाद सुबह तो रोज होती है लेकिन इस आम जनता की सुबह , शाम और रात का पता ही नहीं चलता है बस मैं तो उस सुबह का इंतजार कर रहा हूँ जब आम आदमी भूखा नहीं सोये , उसे काम मिले और दाल रोटी भी

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