Thursday, August 27, 2009

THE COUNTRY LOVE OF BJP



The truth is hard and we have to face it. This is a shameful incident that in our so called Democratic country now the power of speech and expression is seeming to be banned. The reason may be anything. It is a matter of disgrace the book of jaswant singh has become the matter of controversy but the reality is on other side. who has studied the complete book even in two days, a few.... and said that he has alleged the policy of banning RSS by sardar patel . It is not candid. Is it self criticism or anything else, the party of intellectuals and ideologies has forgot the praising statement of lal krishna aadvani being given in pakistan .because it was for the sake of political benifit of party .
Now the Hanuman of party is not in the party .the party is talking about discipline and about the implementation of it .shashi tharoor criticised every Gandhian memeber in his book '' INDIA IN 20TH CENTURY'' .The party today has given him the prestigious post . In accordance with my opinion there are some political memebers who does not want to peep in the history or to analyse it .The person who worked consistantly for 30 years and outed in fragment of second by giving messge on the cell phone , Is it the way to maintain the dignity and prestige of the party . jinna even in the last stage of his life commited to NEHRU that he has made blunder by dividing pakistan . But it is being supressed there . The vision of this party is narrowing . The ban on the selling of this book in Gujarat is also a matter to think about .Arun shori has not been said anything even after speaking too much against the party .
what may be the reason behind it, is a question to all of us.the party members must follow the ideologies and principles .Beyond the boundary of this political ideology an ideology of expression has hurt the policy of the political party .The party has taken the decision and being criticised.Is it the way to strengthen the political background which has weakend in the last loksabha election. The common stupid man is not able to understand this political hurricane . The party is only trying to show the country love , nothing more than it .

Thursday, August 20, 2009

जिन्दगी

गम तो सबों को मिलती है लेकिन
खुशियाँ किसी किसी को नसीब होती है
मौत तो सबों को मिलती है
लेकिन एक अच्छी जिन्दगी किस्मत वालों को तह्रिब होती है
अपनों के लिए तो सभी जीते हैं
हमें चाहिए की हम औरों के लिए जियें
गम को भुलाने के लिए शराब तो सभी पीते हैं
हमें चाहिए की हम उन अश्कों को पियें
जिन्दगी एक दास्ताँ नहीं जिसे हम लिखें
पहिलेयों का संघर्ष कोई कम लिखें
दुनिया की रीती रिवाजों का सितम लिखे
अपनी समझ से कभी गम न लिखे
अगर लिखे तो ख़ुशी के आसूओं में आँखों को नम लिखे

Wednesday, August 19, 2009

PUBLICITY OR REALITY

This is not the first time that interrogation were being done for a long time and khan named person was being interrogated why media is making fuss after such a small thing this is just nothing but only the way to give a public stunt. It may be for the forthcoming film “MY NAME IS KHAN “ or it is destined to do so .king khan is not only an actor but also an indian he knows that what goes with an indian in America , If Abdul Kalam , the president of India has to go under interrogation , George Fernandez , a Christian in his govt. has to face these difficulties why media goes after such a small news.

This is nothing but only the way to lighten the person who is away from the media from a long time. It may be Amar Singh or SRK this becomes the first duty for a police man of the country that they do their duty honestly, what is in the question "from where you have got the money “ after the incident of 9\11 it has become a tough task for the govt. of America to overcome terrorism . this may be asked from anyone it is not possible that everyone will know you that you are the king khan or any one else . It is our Indianness that we get hurted. It happens as the daily routine of the life many of the person has to go under these circumstances but it does not become the news because they are the stupid common man .

If it happens with SRK or someone else with such background; it becomes a breaking news for the TV channels which on the day of independence even find himself with lack of news why SRK is also running after such a small incident is not known to all . This is a matter of shame that such incident happens with a star who is even recognized by the crowds at that time and being said for autograph . If srk is not hurted by the interrogation or the way the interrogation were being done why he is presenting himself for the media confrence .we should try to avoid such type of incident and focus on the news of suiciding of 5 farmers in our country. ouur indian ness has gone astray and there is an essential need to bring the changes .

Tuesday, August 18, 2009

आज़ादी के मायने

आज़ादी किसे अच्छी नही लगती वो खूंटे से बंधा पशु हो या फिर पिंजरे में बंद पक्षी , बचपन की यादों को ताज़ा करने के लिए काफ़ी हैं लेकिन क्या सही मायने में हम आजाद हैं |कुछ सवाल ऐसे हैं जो इस मानवता को झकझोरने के लिए काफ़ी हैं आज हम ने आज़ादी के ६२ वें सालगिरह को मनाया है लेकिन आज भी हम आज़ादी की सच्चाई से बहुत दूर हैं |देश आज भी गरीबी और भूख मरी की समस्या से जूझ रहा है घोषणाओं और वादों से गरीबों का पेट तो नही भरा जा सकता उनके लिए कौन सी आज़ादी और कैसी आज़ादी वो इन चीजों को शायद जानते भी नही |
विकास के रास्ते पर हमने अपने कदम इतने तेज बढाये की गाँव का भारत बहुत पीछे छुट गया और विकासवादी सिध्यांतों का पीछा करने में हम आजाद भारत के गाँव के सपने भूल गए क्या यही है हमारी आज़ादी आज भी अगर लड़कियों को घर से निकलने में डर लगता हो तो कैसी आज़ादी क्या मानवता का गला घोट कर शिखर पर पहुंचना ही आज़ादी है अगर ऐसा है टी हम सही मायने में आजाद हो चुके हैं अन्यथा आज भी गाँव का भारत और उसकी आधी आबादी को दो जून की रोटी ठीक से नही मिल पा रही है |
सरकारी नीतियों से सिर्फ़ संतुष्टि मिल सकती है वो भी पल भर के लिए लेकिन मानवता के कल्याण के लिए एक ऐसे क्रांति कई जरूरत है जिसकी क्रांति से बदलाव लाना सम्भव है लेकिन सबसे ज्यादे जरूरत है ऐसे क्रांतिकारी की जो क्रांति की मसाल जला सके .शब्दों में अब उतनी ताकत नही जो वैसी क्रांति ला सके जैसा की पहले हुआ करता था अब लिखे जरूर जाते हैं लेकिन उनपे अम्ल नही किया जाता है सिर्फ़ एक दिन निर्धारित होते हैं जिसमें हमारी सरकार गरीबों की समस्या से सबको रु बरू करा देती है लेकिन उनके उपाय नही होते हैं |अगर ऐसी आजदी भारत्वासिओं को प्यारी है तो मैं ऐसा भारत वासी कहलाना पसंद नही करूंगा |
अगर हम सही मायने में भारतीय हैं तो हमें मानवता के कल्याण के लिए एक ठोस कदम उठाने की जरूरत है अगर हम ऐसा करने में सफल होते हैं तो हम सच्चे भरतीय कहलाने के पुरे हक़दार हैं अन्यथा नही |आख़िर इन ६२ सालों में बदला क्या सिर्फ़ हमारे कपड़े और हमारी अनुसरण करने की शक्ति और तो कुछ भी नही बदला |सही मायने में अगर हम्मे मानवीयता शेष है तो एक ऐसा प्रयास करें जो आज़ादी के सही मायनों को दर्शाती हो |

Tuesday, May 12, 2009

माँ दिवस क्यों ?

" दूरजाकर भी दूर जा न सके , हमें अफ़सोस की हम उन्हें भुला न सके
वो लाख कहें मैं दूर हूँ लेकिन हम उन्हें ख़ुद से जुदा पा न सके
कल्पनों की दुनिया में हम मानवीय पक्षी कभी ऐसी उड़न भरने को सोचते हैं जिसके न क्षितिज की सीमाओं का पता और न ही धरती का \ विज्ञानं के इस बदलते युग ने सही मायने में इन्सान के जीवन की हर चीज बदल दी है , लेकिन क्या इन बदलती परिस्थितयों ने रिश्तों को बदलने का बीरा उठाया है , हाँ शहरों में रहते हुए भाग दौड़ की जिन्दगी में ये शब्द कटु तो हो सकते है लेकिन यह हमारे जीवन का सत्य बनता जा रहा है क्योंकि आज हम माँ जैसी अमूल्य रिश्तों को याद करने के लिए एक दिन निर्धारित करते हैं , क्या हमारे पास वर्षों की खुशी में मात्र एक दिन रह जाते हैं जब हम अपनी माँ को याद रख सकें जिस माँ ने हमें नौ माह अपने गर्भ में अपनी खून से सीचा , लाख तकलीफों के बावजूद हमें जन्म दिया और ऊँगली पकड़कर चलना सिखाया क्या मात्र एक दिन की खुशी उनके कलेजे को ठंडक पहुँचा सकती है
बचपन में सुना था की अख़बारों मं पढ़े लिखे लोग अपनी बात लिखते हैं लेकिन अज पता चला की ये तो व्यवसाई बुन बैठे हैं , अख़बारों के जरिये माँ को याद करने और खुसरखने का तरीके परोसते हैं संस्कृत के शालोकों यह कह गया है की पुत्र कुपुत्र हो सकते हैं लेकिन माता कुमाता नही हो सकती जीवन की रफ्तार ने मानवीय संवेदनाओं को एक दिन में पिरोने की कोशिश की है लेकिन इस रफ्तार ने हमारी मानवीय भावनाओं को आहात किया है फिल्मों को हमारे समाज का आइना मन जाता है तभी तो दीवार जैसी फिल्मों के अभिभाषण " मेरे पास माँ है " अज भी लोगों की जुबान से कभी न कभी चिपक जाते हैं , सृष्टि की संरंचना में हम प्रकृति की इस अमूल्य देन को अलग नही कर सकते , विज्ञानं हमें टेस्ट ट्यूब बेबी और क्लोनिंग जैसे उपहारों से खुश करने की लाख कोशिश कर ले लेकिन माँ की ममता और उसकी गोद का प्यार नही दे सकती एक मानव होने के नाते हम्मे अगर सोचने की तनिक भी क्षमता शेष है तो दिवस के बंधन से मुक्त होकर माँ की ममता और उसके प्यार की खातिर इन बन्धनों में न बढें , यह हमारी मानवीय अपील है

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